This blog is for Socially poor ,for uplifting their human values in day today Pure life.Like Buddhism originates in the teachings of Shakyamuni (Gautama Siddhartha), who was born in what is now Nepal some 2,500 years ago.He became increasingly possessed by a longing to abandon the secular world and go out in search of a solution to the inherent sufferings of life.And he gave Triratn ,Four Nobel truth ,Panchshil ,Ashtangik way and ten Parmi .for peace of Globe.
Thursday, July 30, 2020
आनंदवन कर्णबधिर विध्यालाय
Monday, July 27, 2020
परिशीलन
Saturday, July 18, 2020
पुण्य स्मरण :अण्णा भाऊ साठे !
Friday, July 10, 2020
प्रज्ञा आणि आचरण
Thursday, July 9, 2020
का रे राजगृही ?
क्रांतिवीर लहुजी साळवे कर्मचारी कल्याण महासंघ (लसाकम ) !
प्रेस न्यज
गुरुवार ०९ /०७/२०२०
क्रांतिवीर लहुजी साळवे कर्मचारी कल्याण महासंघ (लसाकम ) या सामाजिक संघटनेच्या राज्येकार्यकारणीचा विस्तार नुकताच जाहीर करण्यात आला . या झालेल्या बैठकीत लसाकम कार्यकारिणीचा विस्तार करण्यात आला असून यात नवीन प्रदेश कार्यकारिणी तयार करण्यात आली आहे . या लाईव बैठकीत लसाकम चे संस्थापक मा. नर्सिंग घोडके यांची प्रमुख उपास्तिथी होती .
प्रा. बालाजी शिंदे ,हे कर्णबधिरांचे विशेष शिक्षण या क्षेत्रात गेली पंचवीस वर्ष कार्यरत असून ,सध्या ते विस्तार सेवा विभाग ,अली यावर जंग राष्ट्रीय वाचा आणि श्रवण दिव्यांगजन संस्था (भारत सरकार ,नवी दिल्ली ) मुंबई येथे कार्यरत आहेत . शाहू –फुले आंबेडकरी विचरांची धुरा शिरावर घेऊन कवि ,लेखक कथाकार अश्या विविध अंगाने नटलेले व्यक्तिमत्व लसकामला लाभले आहे .
प्रा. बालाजी शिंदे हे आणा भाऊ साठे नगर हाळी ता उदगीर येथील मूळ रहिवाशी असून ,सध्या नेरूळ नवी मुंबई येथे वास्तव्यात आहेत .
या कार्यकारिणीत प्रा. बालाजी शिंदे ,यांची ठाणे – सचिव या पदी नियुक्ती करण्यात आली आहे . त्यांच्या पुढील कार्यास तमाम मातंग समाजातर्फे हार्दिक शुभ कामना . लसाकम प्रदेश कार्यकारिणी पुढीलप्रमाणे आहे.
1) बालाजी थोटवे , नांदेड - प्रदेशाध्यक्ष
2) राजकुमार नामवाड , लातूर - महासचिव.
3) प्रा सोमनाथ कदम , कणकवली - कार्याध्यक्ष
4) मनोहर डाकरे , निलंगा - उपाध्यक्ष
5) ललित अंभोरे , अकोला - उपाध्यक्ष
6) विलास मानवतकर , बुलढाणा - उपाध्यक्ष
7) पी एल दाडेराव , मुखेड - कोषाध्यक्ष
8) प्रा डॉ. मारोती कसाब , उदगीर - प्रवक्ता
9) अरूण कांबळे , औरंगाबाद - प्रवक्ता
10) प्रा. डॉ. नरेंद्र गायकवाड , कराड - सचिव
11) इंजि. मनियार , औरंगाबाद - सचिव
12)प्रा. बालाजी र. शिंदे , ठाणे - सचिव
दुसरा प्रदेश कार्यकारिणीचा विस्तार व विभाग कार्यकारिणीची घोषणा लवकरच करण्यात येईल.
असे प्रदेश आधेक्ष यांनी कळवले आहे .
प्रा.बालाजी र. शिंदे ,नेरूळ -७०६
Mobile : 9702158564
balajishinde65@gmail.com
Saturday, June 27, 2020
राजर्षी : राजा शाहू महाराज
हिरे ,माणके ,सोने उधळा ,जयजयकार करा
जय राजर्षी,शाहूराजा ,तुजला हा मुजरा !
#डिप्रेशन.
एक लव्ह Matter
सहा वर्षी पूर्वीची गोस्ट आहे ..( आप बिती).
Wednesday, June 17, 2020
मले भी माझ्या जातीचा ले अभिमान आहे भौ !
मले भी माझ्या जातीचा ले अभिमान आहे भौ !
======== प्रा.बा. र. शिंदे==
मालकाचे शेत राखतोवर्षभर घरगडी म्हणून चोवीस तास तिकडेच असतो मी भौ
माझी माय आणि परडी एक अतूट नाते
एकुलती एक बहीण मुरळी हाय भौ
आत्या आराधीन हाय अन मामी ने जटा ठेवल्यात भौ
भीमाच्या गोस्टी ,म्हन्ती हीच काय एकता
चल ग आपुन रानात खुरपाय जाऊ
शाळा शिकून काय फायदाच नाही
वाघ्या बी आम्ही मुरळी बी आम्ही
हलग्या भी आम्ही जोगणी बी आम्ही
मोलकरीण अन देवदासी बी आमी
येवढे शिक्षण घेऊन ज्ञानी का नाही झाले आमी
मले भी माझ्या जातीचा ले अभिमान आहे भौ !
सोडून द्या नाद त्या पुरोहीताचा
चला लागा समतेच्या धम्म मार्गी
होईल इकास तुमच्या जीवनाचा
परत नाही येणार कोणी क्रांति भीमबाबा
घडव जीवन तुझे आणि जा त्या मार्गा
अन प्रभू तो मानवा
मले भी माझ्या जातीचा ले अभिमान आहे भौ !
Tuesday, June 9, 2020
आदिवासी नायक बिरसा मुंडा बाबा हा भारताचा पहिला सुपरहीरो.
Monday, June 8, 2020
तृष्णा ही जटाय !
तृष्णा ही जटाय !
मानव मुक्ति किस तरह हो इस माया जाल से और कौन है जो इस जटा से
मुक्ति पते ? जो इसपर विजय पा सके ?
जो चार अरीय सत्य ,पंचशील,अष्टांगिक
मार्ग और दश पारमी को जान सके और ध्यान कर पालन कर सके वही इस जटा से मुक्ति पा
सके ?
"अन्तो जटा बहि जटा, जटाय जटिता पजा।"
एक समय भगवान
श्रावस्ती में विहार करते थे। उस समय रात में किसी देवपुत्र ने भगवान के पास आकर
अपना संदेह मिटाने के लिए पुछा-
"अन्तो जटा बहि जटा, जटाय जटिता पजा।
तं तं गोतम!पुच्छामि, को इमं विजटये जटं?"
भीतर जटा है,बहार जटा है,जटा से
प्राणी जकड़ी हुई है, इसलिए हे गौतम! आप से पुछता हूँ कि कौन
इस जटा को काट सकता है?
भगवान ने उसका उत्तर
देते हुए कहा-
"सीले पतिट्ठाय नरो सपञ्ञो, चित्तं पञ्ञञ्च भावयं ।
आतापी निपको भिक्खु,
सो इमं विजटये जटं।।"
जो नर प्रज्ञावान है,वीर्यवान है, पण्डित
है, भिक्षु है,वह शील पर प्रतिष्ठित हो,
समाधि और प्रज्ञा की भावना करते हुए इस जटा को काट सकता है।
जटा का तात्पर्य है
तृष्णा। क्योंकि तृष्णा जाल फैलानेवाली है। बार बार उत्पन्न होने वाली तृष्णा बाँस
के झाड आदि के शाखा-जाल कहलाने वाली जटा के समान होने से जटा है। तृष्णा अपनी और
पराई चीजों में, अपने और
दूसरे के शरीर में, भीतर और बाहरी आयतनों में उत्पन्न होने
से भीतर जटा है, बहार जटा है। उसके ऐसे उत्पन्न होने से
प्राणी जटा से जकड़ी हुई है। इसलिए उसने पुछा कि इस जटा को कौन काट सकता है।
भगवान ने उत्तर में कहा-
जो शील, समाधि और प्रज्ञा
में प्रतिष्ठित वीर्यवान पण्डित व्यक्ति है वह तृष्णा रूपी जटा को काट सकता है।
"अयं एकायनो मग्गो।"
संसार के सभी दु:खों
से मुक्ति पाने के लिए यही अद्वितीय मार्ग है। शास्ता बुद्ध ने तृष्णा का समुच्छेद
करने के लिए शील समाधि और प्रज्ञा का आठ अंगों वाले धम्म का उपदेश दिया है।
"ये च धम्मा अतीता च,ये च धम्मा अनागता।
पच्चुपन्ना च ये
धम्मा,अहं वंदामि सब्बदा।।"
नमो तस्स भगवतो
अरहतो सम्मा सम्म बुद्धस्स !
प्रा.बालाजी शिंदे ,नेरूळ -७०६
Mobile : 9702158564
स्पर्श 2
पहला स्पर्श माँ से होता है ,जन्म के तुरंत माँ अपने औलाद को स्पर्श करती है तो उसे लगता है कि उसका जीवन सफल हुवा ,और वह माँ का रूप धारण करती है।
बच्चा अपने माँ के स्पर्श से ही माँ की पहचान बना लेता है ,देखकर ,सुनकर,और आवाज से उसे सुख तो मिल ही जाता है।लेकिन जब माँ स्पर्श करती है।तो बहुत खुश और सचेत रहता है।माँ के गोदी में सोना ,सोते सोते दूध पीना और अछिशी नींद पा लेना ,स्पर्श से ही माँ के पूरे बदन पर खुद खेल ते रहता है। माँ के स्पर्श का अन्य चार गुनोसे सौ गुना लेता है।उसके ग़लोंको हात लगाना ,बलोंको खीचना। आदि .
लेकिन माँ भी उसके स्पर्श को उतानी ही उतावली रहती है। माथे पे चुम लेना ,गाल नोचना ,और नहाते -सोते समय पूरे बदन की मालिश करना ,दोनों को एक स्पर्श का आनंद मिलता है।
जैसे जैसे बालक की उम्र बढ़ जाती है उसकी स्पर्श की परिभाषा बदल जाती है।
पिताजी ,चाचा ,चाची नाना नानी इन्ही के अंग पे खेल खुद कर स्पर्श की दृढ़ता हो जाती है।
इस स्तिथि के बाद जो बालक कदम लेता है वह एक नाजुक मोड़ है ,इस मोड़ में वह आपने पियर ग्रुप में शामिल हो जाता है।
आपने माय अंग या गुप्तांग को जानने की कोशिश करता है। और उतावलापन आजाता है .
लड़का -लड़की अपने अंग को स्पर्श करके अपने अंग को देखकर बार बार जानने की कोशिश करते है,और स्पर्श की भावना जागृत होती है। यहाँ धोके की घंटा दोनों के मन मे आजाती है।
जब स्पर्श न हो तो उस मन से छूनेकी लालसा बढ़ जाती है।
स्पर्श के साथ ,बातें ,और देखने का नजरिया एक मकाम के ओर ले जाता है।
जब शादी की उम्र आ जाती है तो स्पर्श का अर्थ और एहसास बदल जाता है।
पति पत्नी में ही स्पर्श एक रोज का एहसास प्रेम या वीर रस को बढ़ावा देने का मुख्य काम करता है।
शादी के बाद अगर स्पर्श का एहसास न हो तो वह प्रेम और शादी एक नरक बन जाती है।दोनों पति पत्नी एक साथ सो तो जाते है एक ही शय्या पर पूरी रात स्पर्श नही करते है तब ,एक दूसरे के जीवन मे तान तनाव आजाता है ।
जैसे ढेर सारी बातें हो ,शरीर की हलचल हो ,घर किचन में बातों के साथ स्पर्श की बातें हो तो वह अंतिम सुख को काम आजाती है।अगर औरत इन बातोंको इनकार करती है,या इन बातोंको पाप या गलत समज लेती है तो एक तो वह आपसे चाहती नहीं है,या आपके साथ एक अलग से रिश्ता रखना चाहती है।समाज को दिखाने को एक पति की जरूरत पूरी कर लेती है।
और आपके सुख में बाधा पैदा करती है। यह संबंध वाद विवाद और घर में सुख शांति पैदा करता है .
अगर यह स्तिथि कायम हो तो ,इंसान बाहर के स्पर्श को ढूंढता रहता है । किंव की वह स्पर्श का सुख आपने ही घर मे नही पता।ठीक उशी तरह औरत भी अपना रास्ता ढूंढ लेती है। इसलिए पति –पत्नी में रोज और कायम स्पर्श होना बहुत अहमियत रखता है।
घर परिवार में पत्नी और पति में ढेर सारी बातें हो,बातोंसे परिणाम निकल आते है।बातों बातों में एक दुसरोंको सही आत्मीयता से देखने की गरिमा बढ़ जाती है।और पति पत्नी में विश्वास बढ़ जाता है और प्यार की दृढ़ता भी बनकर एक दूसरे से सच्चा प्यार पाते है।
बातोंसे ,देखने से फिर आखरी स्पर्श की बारी आजाती है ।इन दोनों के स्पर्श से अंतिम प्यार और सच्चे प्यार में बदलाव आजाता है। सच्चे प्यार और पानेके लिए स्पर्श ही काफ़ी है।
आपकी नोकरी धन दौलत तो एक बाहरी देखावा है ।इन सब को सचेत रखने के लिए पति पति में 'स्पर्श कायम' होना बहुत ही अहमियत रखता है।
जिस घर मे स्पर्श की परिभाषा का विकास नही हुवा हो,वह घर उध्वस्त है। एक दूसरे में चिड़चिडापण ,रोज का झगड़ा ,और इन सभी का आपने घर परिवार पे बुरा असर होता है। कभी कही एक दूसरे पे शक करना,यह बच्चा मेरा नही है।यहाँतक की झगड़े की नौबत आजाती है।और कभी कभी अलग होनेकी सम्भवना दृढ़ हो जाती है।
अगर येही स्पर्श बाहर कही हो जाता है तो कयामत छा जाती है। किंव कि वह एक पराया स्पर्श होता है।वह फिर दूसरोंकी बीवी हो या पति हो।लेकिन यह स्पर्श कायम वास्तव में नही रहता,कभी कभी धोका देता है,या फिर टूट जाता है।इस स्पर्श को समाज मान्यता नही है।इसलिए यह स्पर्श चोरी छुपे हो जाता है। इस मोड़ पर न आये इसलिए पति पत्नी में कायम और मुलायम स्पर्श होना जरूरी है।
दोनों बाजू का पर्याय स्पर्श समाज मान्यता न होनेपर भी कभी कभी कायम और अंतिम सांस तक चल भी जाता है। आपने घर परिवार में आपने ही बीवी या पति से स्पर्श का सुख न मिले तो बाहर के स्पर्श का रुख बदल जाता है ,और बार बार उसे पानेकी लालसा बन जाती है। स्पर्श जितना सख्त,मुलायम और देर तक रहेगा तो वह दिलो दिमाग मे कायम घर कर लेता है ।आपने पराये बन जाते है,और पराया स्पर्श अपना बन जाता है।
सिर्फ घर मे रह जाते है दो बदन कोई गॉसिप कोई मन की बात नही हो जाती।फिर काम काज की बाते रह जाती है।अपना पन खत्म हो जाता है।रहते है सिर्फ नाम के मिया और बीवी।
पराया स्पर्श घर परिवार में आनेसे घर की खुशियां चली जाती है।परिवार ,बच्चे इनपर भी असर हो जाता है।एक दूसरोंसे बहुत ही दूर चले जाते है।कभी न वापस आने के लिए।
पति पत्नी में स्पर्श बढ़ाना हो तो किंव न हम उसे आपने घर से शुरुवात करे।घर मे हो तो कभी कभी एक दूसरोंको छुए,गाल नोचे ,बालोंमें उंगलिया घुमाए,बैठे बैठे हाथ पकड़ ले, सुबह साथ नहाए,ताकि एक दुसरेकी चाहत बढ़े और अस्पर्श की भावना खत्म हो। एक दूसरोंके बालो में तेल लगाएं ,और कंगी घुमाए। हो सके तो दोनों किचेन में खाना बनाने को जाए ,नजदीकियां बढ़ जाये तो स्पर्श भी बढ़ने लगता है।इन्ही सभी बातोंका स्पर्श आपके प्यार को चार चांद लगा लेता है।
घर परिवार में कभी अकेला पन मिल जाये तो एक दूसरे की गले मे बहे डालकर तोड़ा रूमानी होंजाये,थोड़ा डांस भी करे। संडे के दिन और छुट्टि के दिन सुबह पूरे बदन पर तेल लगाकर मोलिश करे,इन्ही स्पर्श में गॉसिप करते है ,और स्पर्श की लालसा बढ़ेगी और आपका प्यार और मजबूत हो जाएगा ।
छुटी के दिन बाहर सेहर पर चले जाएं,पब्लिक वाहन का भी थोडा उपयोग किया जाय ,जैसे रिक्शा और कार की सफर जदि हो ताकि स्पर्श जादा हो। समंदर पे घूमने जावो ,हात में हात लेकर देर रात तक घूम कर। इससे अंग की गरिमा मिले तब स्पर्श की भावना दृढ़ हो जाये। और आखरी स्पर्श का सुख ले .
यह सभ तजर्बे अपनाने के लिए एक दूसरेका साथ होना बहुत जरूरी है,वरना कोई आपने घर परिवार में दूसरा रुदयस्पर्शी बनके न आये और आपने कानो कान खबर न हो जाये। इसिलए 'आपने पत्नी,या पति से स्पृश सतत और हमेशा बनाये रखे।
काम तनाव से बहुत सी पत्नी और पति एक दूसरोंको इस स्पर्श का एहसास नही दे पाते वही एक दूसरे को सुख नही दे पाते। यह एक आज के घडी का भयावह चित्र है .
इन्ही समश्या को दूर करनेके लिए उपरोक्त सभी प्रकार के कारण आजमाना चाइये। और एक दुसरोंको जादा से जादा समय दे .
साथ में रहना स्पर्श करना यह शरीर के सुख का अंग नही है।फिर भी एक ही पलंग पे सोते है तो बाते करते करते स्पर्श करके सो जाईये सुख मिलेगा ,यहाँ सम्भोग की भावना का सवाल ही नही आता।
कभी कभी आदमी की शरीर भावना तो स्पर्श से शुरुवात होती जरूर है,लेकिन ऐसा नही की आपकी बिवि आपको संभोग करने दे।संभोग एक दिमाग की भावना है।स्पर्श एक एहसास है।यह एहसास हमेशा नही होना चाहिए और वासना भी नही होनी चाइये,वह आपकी बीवी किंव न हो। लेकिन स्पर्श का एहसास जरूर हो।रोज सदाके लिए और कायम। किंव की दोनोके स्वस्थ के लिए शास्त्रीय दृष्टिकोण से उचित है। जैसे स्पर्श होने से शरीर का रक्त स्रव कायम रहता है,उसका नतीजा यह होता है ।आपको शुगर,की बीमारी नही होगी और हार्ट अटैक कभी नही होगा। आप अगर रोज या सप्ताह में तीन बार शरीर सुख पाते हो या देते हो तो आपका बदन का व्यायाम और आयाम ठीक रहेगा ,और आपको बीमारी कभी छुने का नाम नही लेगी।
पूर्वी स्पर्श
पूर्वी स्पर्श जो इंसान के भूले भिचड़े पल में हो जाता है।कभी भूल कर तो कभो अनजाने में कभी जानबूझकर या कभी जबरदस्ती हो या ,किसीसे अनजाने में प्यार होने से।
बहुत से लोगोंको बचमन में कभी स्पर्श हो जाता है और स्पर्श का दायरा बढ़ जाता है।
वह स्पर्श पहला होने से उम्रभर तकलीफ देता है। अगर प्यार टुटा हो तो?
जबरदस्ती से किया हुवा स्पर्श एक मजबूर कर देता है ,कोई जानबूझकर स्पर्श करता है।और जबरदस्ती से स्पर्श का अभ्यास मन मे पैदा कर देता है। वह स्पर्श भूलकर भी भुला नही जाता ।उसे लाख कोशिश के भी दिलो दिमाग से बाहर नही निकल जाता । इसलिए कि वह एक डरावना स्पर्श होता है।
बचपन मे कोई धुश लगाकर पास आकर स्पर्श करनेकी कोशिश करता है।और वह हमारे इछाओंके शिवाय होता है इसलिए वह पल डरावना और घटिया लगता है।
कभी अपना कभी रिस्तेमे ,या कभी पराया स्पर्श करने की कोशिश करता है,और वह कामयाब भी हो जाता है ।ऐशी स्पर्श की भावना दिल और मन को ख़राब कर देती है
फिर किसके स्पर्श की भावना मन मे नही आती।किसीको छुने की भावना और इच्छा मर जाती है।वह स्पर्श की भावना पुनःह जन्म नही लेती।म इसे भी पहला स्पर्श कहाँ जाय. फिर भी पूर्वी स्पर्श भूल जाना ही बेहतरीन होता है।
लेकिन पहला स्पर्श भूल जाना बहुत ही कठिन है। फिर भी इंसान भूल जानेकी कोशिश जरूर करता है।लेकिन कभी कभी फिर से अच्छी स्पर्श की बात बन जाती है तो वह भूल जाता है।भूल जानेकी कई मजबूरी भी बन जाती है।
प्रा बालाजी रघुनाथराव शिंदे
विस्तार सेवा सहाय्यक ( विशेष शिक्षा )
विस्तार सेवा विभाग ,अ.या.ज.रा.वा.श्र.वि.संस्था ,बांद्रा (प) मुंबई ५०
balajiayjnihh@gmail.com
balajirshinde.blogspot.com
www.ayjnihh.nic.in
अमर्त्य सेन
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