Saturday, July 29, 2023

धपोलशंख

आज आपलोगों को एक कहानी सुनाता हूँ। ढपोरशंख की। इसमें आप वर्तमान के ढपोरशंखी लोगों की पहचान खुद कर सकते हैं। तो लीजिए पेश है कट एंड पेस्ट कहानी ढपोरशंख की! वैसे भी जब भी लोककथाओं में ब्राह्मण आता है तो निर्धन ही होता है!

तो एक निर्धन ब्राह्मण अपनी आर्थिक तंगी से दुःखी होकर घर से निकल पड़ा धनोपार्जन करने के लिए । मार्ग में उसे किसी सत्पुरूष ने राय दी कि यदि वह समुद्र के अधिष्ठाता देवता वरुण को तप एवं आराधना से प्रसन्न करे तो उसे समुचित वर देकर वे उसकी निर्धनता हर लेंगे । गरीब ब्राह्मण सरल-हृदय तथा आस्थावान था। वह समुद्र तट पर पहुंचा और वहां तपस्या आरंभ कर दी । कालांतर में वरुण देवता एक संन्यासी के रूप में उसके सामने प्रकट हुए और बोले, “वत्स, बोलो तुम इस एकांत में तल्लीन होकर जप-तप में क्यों लगे हो ? तुम किस समस्या का समाधान पाना चाहते हो ?”
उस ब्राह्मण ने सम्मान के साथ संन्यासी को नमन किया और फिर उसने अपनी व्यथा उन्हें सुनाई । संन्यासी ने अपनी झोली से एक शंख निकालकर कहा, “लो, मैं तुम्हें ‘श्रीशंख’ नामक यह शंख दे रहा हूं जो तुम्हारे कष्ट दूर करेगा । इस शंख की तुम आस्था के साथ पूजा-अर्चना करना और फिर अपनी आवश्यकता के अनुसार इससे अशर्फियों की मांग करना; यह तुम्हारी इच्छा पूरी करेगा । लोभ-लालच में पड़कर अधिकाधिक धन की मांग मत करना । बस अपनी आवश्यकता भर की मांग करना ।”

इतना कहने के बाद संन्यासी अंतर्ध्यान हो गये । ब्राह्मण श्रीशंख को साथ लेकर घर लौटने लगा । मार्ग में रात्रिविश्राम के लिए वह एक गांव में किसी संपन्न व्यक्ति के घर पर ठहर गया । उस व्यक्ति ने भोजन-पानी समर्पित करते हुए उनका आतिथ्य-सत्कार किया । उसके पूछने पर ब्राह्मण ने अपनी निर्धनता और वरुण देवता के वरदान की सभी बातें बिना कुछ छिपाए सुना दीं। उसने श्रीशंख की विशेषता का भी वर्णन कर दिया। उस व्यक्ति की जिज्ञासा शांत करने के लिए ब्राह्मण ने शंख से एक-दो अशर्फियां भी मांगकर दिखा दीं।

श्रीशंख की खूबी देखकर ब्राह्मण के मेजमान के मन में लालच आ गया। रात में जब ब्राह्मण गहरी नींद में सोया था तो उसने ब्राह्मण की गठरी से श्रीशंख चुरा लिया और उसके स्थान पर दिखने में समान एक साधारण शंख रख दिया। प्रातःकाल किसी प्रकार की शंका किए बिना ब्राह्मण अपने घर के लिए चल पड़ा। 

घर पहुंचने पर उसने प्रसन्न हो अपनी अर्धांगिनी को वरुण देवता द्वारा प्रदत्त शंख का रहस्य बताया।  तत्पश्चात् स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो शंख की पूजा-प्रार्थना करते हुए कुछ मुद्रा की याचना की। लेकिन वह तो साधारण शंख था, भला उसका क्या उपकार करता; श्रीशंख तो वह मार्ग में ही खो बैठा था ! वह मामला समझ नहीं पाया। उसने निर्णय लिया कि वह दुबारा वरुण देवता की शरण में जाएगा।

उस निष्कपट ब्राह्मण ने पिछली बार की तरह वरुण देवता की पूजा-अर्चना की; देवता प्रसन्न होकर प्रकट हुए; उन्होंने समझाया कि मार्ग में उसके साथ कैसे धोखा किया गया; और अंत में उन्होंने उसे ढपोलशंख (ढपोरशंख) नाम का नया शंख दिया। वे बोले “देखो, यह शंख तुम्हें कुछ देगा नहीं, लेकिन तुम्हें देने का वादा करेगा जरूर। तुम कहोगे कि मुझे एक अशर्फी दे दें, तो यह कहेगा, ‘एक अशर्फी क्या तुम दस मांगो, बारह मांगो, वह मिलेगा ।’ तुम जितना मांगोगे यह उससे कहीं अधिक मांगने की बात करेगा।”

देवता ने ब्राह्मण को समझाया, “आगे तुम्हें क्या करना है मैं समझाता हूं। मार्ग में तुम उसी लालची और धोखेबाज मनुष्य के पास ठहरना। उसके समक्ष इस शंख की भूरि-भूरि प्रशंसा करना और इससे एक अशर्फी मांगना। जब यह अधिक मांगने के लिए कहेगा तो तुम कहना, ‘ठीक है, घर पहुंचकर ही मांगूंगा शंख देवता।’ वह व्यक्ति लालच के वशीभूत हो रात्रि में इस शंख को ले लेगा और श्रीशंख इसके स्थान पर रख जाएगा।”

ब्राह्मण ने वैसा ही किया जैसा कहा गया था। फलतः उसे उसका श्रीशंख मिल गया जिसे लेकर वह अपने घर लौट आया। उधर उस लालची व्यक्ति ने ब्राह्मण के चले जाने के बाद ढपोलशंख की पूजा-अर्चना की । जब वह कुछ अशर्फियों की मांग करने लगा, तो  ढपोलशंख कुछ अधिक मांगने को प्रेरित करता। वह अधिक मांगता तो शंख उससे भी अधिक मांगने की बात करता। यह सिलसिला कुछ देर तक चलता रहा। अंत में खिन्न होकर वह मनुष्य बोला, “हे शंख देवता, आप और अधिक मांगने की बात कर रहे हैं, किंतु कुछ दे नहीं रहे। कुछ दीजिए तो ।”

वह शंख खिलखिला कर हंस दिया और बोला, “अरे मूर्ख, मैं ढपोलशंख हूं ढपोलशंख । मैं देता-वेता कुछ नहीं, सिर्फ वादा भर करता हूं । देने वाला शंख तो गया उसी के साथ जिसे तुमने धोखा दिया ।”

और तब से समाज के उन लोगों को ढपोलशंख कहा जाता है। 

बाकी आपलोग इसमें अर्थ भर सकते हैं। इसे व्यक्तिवाचक बना सकते हैं। आंग-कांग-भांग में मस्त ढपोलशंखियों की पहचान क्या ही मुश्किल है!

Saturday, July 8, 2023

विनय पिटक का विनय मतलब विनायक

विनय पिटक का विनय मतलब विनायक : 

गोतम बुद्ध तथागत का एक नाम विनायक भी  है। विनायक का मतलब विनय के गुरु। विनय के गुरु सिर्फ तथागत ही थे। इसिलए विनय पिटक में उन्हीं के वचन हैं। विनय पिटक एक उसिका अंग है 

 त्रिपिटक : (तीन पिटक )

(१) विनयपिटक  : सुत्तविभंग (पाराजिक, पाचित्तिय),खन्धक (महावग्ग, चुल्लवग्ग) परिवार,पातिमोक्ख,

(२) सुत्तपिटक दीघनिकाय,मज्झिमनिकाय,संयुत्तनिकाय,अंगुत्तरनिकाय,खुद्दकनिकाय,खुद्दक पाठ,धम्मपद,उदान,इतिवुत्तक,सुत्तनिपात,विमानवत्थु,पेतवत्थु,थेरगाथा,थेरीगाथा,जातक,निद्देस,पटिसंभिदामग्ग,अपदान,बुद्धवंस,चरियापिटक

(३) अभिधम्मपिटक :  धम्मसंगणि,विभंग,धातुकथा,पुग्गलपंञति,कथावत्थु,यमक,पट्ठान।


यदि कनिंघम ने विनायक का अर्थ विनय का गुरु किया है तो गलत नहीं किया है। सही है।एसे सच्चे लोगों ने इस पवित्र धम्म को जीवन दान दिया है । वे इस भारत मे न आते तो यह पवित्र धम्म कब का नामसेष हुवा होता ।  

विनायक का आधार नायक ,नेता नहीं राज्य कर्ता तो कतई है नहीं बल्कि विनय है। इसीलिए विनय विनायक होता है । नायक विनायक नहीं होता है ।

राजस्थान में जो प्रसिद्ध बौद्ध गुफा विनायक है, वह तथागत के नाम के कारण है। गाँव बिनायग है । 

( तस्वीर विनायक बौद्ध गुफा की है।


प्रा बी आर शिंदे ,नेरुल नवी मुंबई । 


#लाईफ_वार्निंग_बेल

  #लाईफ_वार्निंग_बेल .. .. .. प्रा. बा.र .शिंदे लिखने की वजह ये है की ,आप लोग सभी एप और मीडिया से सतर्क रहे । इसी महीने मे मेरे परिचय के कर...