एक हजार के नोट का बंडल
मैं उस समय कक्षा १२ वी में पढ़ रहा था। मुझे लातूर आते हुए दो साल हुए थे ,और मैं बारहवीं कक्षा बसवेश्वर में दाखिल हुवा था ,यह कॉलेज के दिन की बात है।
लातूर एक ऐसा शहर है वहां हर मजहब के लोग रहते है ,यह एक व्यापार की पेठ है,गुजराती ,मारवाड़ी और पंजाबी व्यापार के चलते यहाँ बसे हुए है।
गंजगोलाई चौक एक संसार का अजूबा है ,यहाँ से शहर के किसीभी जगह जा सकते है और वापस येही आते हो ,अगर आप कही भूल गए हो। इस केंद्र स्थान से साथ रस्ते बहार की और निकलते है। गंजगोलाई शहर के केंद्र स्थान में है। यहाँ गोल चौक के अंदर एक जगदम्बा देवी माता का मंदिर है। कहते है सर फैयाजुदीन ने इसका प्लान बनाया था।
मैं जिस भाड़े के घर में रहता था वह एक छोटासा कमर था , पढाई के लिए जगह नहीं थी। दस बाय दस का कमरा था उसीमे हम दोनों रहते ,मैं और पिताजी ,जिन्हें हम परिवार के सभी सदस्य दादा कहते थे।
एक दिन हुवा यूँ की रोज की तरह मैंने आपन रात का खाना आठ बजे खा लिया और अपनी साइकिल लेके कॉलेज के लाइब्रेरी के और चल पड़ा ,रोज रात में ,मैं दोस्तोंके साथ पढाई करने चले जाता। करीबन चार किलोमीटर की मेरे घर से दुरी होगी।
आज मैं ग्यारह बजे तक लाइब्रेरी में था ,करीबन बंद होनेका समय था। लाइब्रेरी बंद होने के बाद सब सुडेन्ट लोग इस टी स्टैंड पर मधुसूदन होटल में चाय पिने जाते। आज मेरा मन चाय पिनेका नहीं था ,मैंने मलाई का दूध पि लिया।
हम दोनों दोस्त थे , आज उसका नाम पता नहीं। इस वक्त वह मेरे साइकिल पर पीछे बैठा था। रोज मैं अकेला घर चले जाता ,लेकिन आज उसकी सायकिल ख़राब थी वह घर से आते समय चलकर आया था।
उसे आपने घर तक छोड़ने का वादा किया ,तब उसने रिक्शा नहीं की वह मेरे साथ आ पड़ा। मेरे जैसा वह भी गरीब घर से था। हम दोनों सायकिल पर सवार होगये।
हुवा यूँ की कुछ कदम आगे गंजगोलाई के और बढ़ते ही ,आगे से एक रिक्शा हमें जोरोसे हूल देकर निकल गयी। अंदर एक आदमी बैठा हुवा था ,न उसने हमें देखा और न हमने उसे देखा इतनी तेज रफ़्तार से खाली और खुल्ली सड़क पर रिक्शा वाला रिक्शा दौड़ा लिया।
मुझे इस अँधेरी रात और सुनसान आवाज में रिक्शा से कुछ गिरने की आवाज आगयी ,मैंने सायकिल रोक दी। वैसे ही मेरा दोस्त भी उत्तर पढ़ा।
एक हजार के रुपए का बण्डल गिर पड़ा था। मैंने जाके उठा लिया। हम दोनों हैरान हो गए ,अब करे क्या ? पोलिस में जाते तो वह उलटे सवाल हमें पूछते ,और पैसे भी वह रख लेते और कॉलेज में नाम ख़राब होने का डर ?सोचा चलो घर ले जाते।
रात के साढ़े ग्यारह बज गए थे पिताजी सोये थे घर में आते ही पिताजीको मैंने सारी हकीकत बताई ,पिताजी माननेको तैयार ही नहीं ,जब मैंने उन्हें विस्तार से बताया तब मान गए ,और उन्होंने वही नोट का बण्डल हात में लीया । जैसे ही उन्होंने छुवा उसे माथे पे लगाया और सीधे भगवान संकर जी के फोटो के पीछे छुपाकर रख दिए.?
उन्हें डर था की कोई घर तक आयेगा ? पोलिस की तलाशी भी हो सकती है ? लेकिन उन्हें मालूम ये नहीं था की ,कोई धनिक मारवाड़ी ,बनिया ,या पंजाबी रात के नसे में रिक्शा में बैठे -बैठे पैसोंके बण्डल गिनते हुए घर जा रहा था ?
मेरे दादा बड़े भोले थे ,तीन महीने तक उन्होंने वह नोट का बण्डल वही रखा था। किंव की उनके जिंदगी में पहली बार उन्होंने ऐसा पैसा देखा था और मैंने भी। आज मेरे दादा नहीं है। उनकी यादें मेरे साथ है ,सदा के लिए।
जब वह गांव गए तब नोट का बण्डल छुपाकर अपने अंदरवाले कमीज में डालकर ले गए थे ,माँ कहती थी ,उन्होंने घर गली में सबको वह बण्डल दिखाया था। वह पैसा काम आया ,जब दादा और दादाजी ने हमारा दूसरा घर बनाया था।
बी आर शिंदे ,नेरुल- ७०६
१४ /०२/२०१७