आज
शिक्षकदिन : ९ सप्टेम्बर
बालाजी शिंदे ,नेरुल -७०६
पहला टीचर डे (जिसे आज शिक्षक दिवस कहते है ) ५ सप्तेबर १९६२
को मनाया गया था । आज उसे पुरे ४६ साल हुए है। सही मायने में जब पुरे भारत में मुस्लिम
और बहुजन को पढाई और लिखाई में मना था ,और
कमर के ऊपर नर नारी को वस्त्र पह्नेको मज्जाव था। तब जाके इन अछुत और पिछले जाती वर्ग के लिए एक मसीहा सामने आया और उन्होंने आपना घर ,परिवार
इन लोगोंके शिक्षा और पढाई के लिए नौछावर
कर दिया था ,वे महानाव थे “ महात्मा ज्योतिराव जी फुले”।
इन्होने ,फातिमा ,मुक्ता सालवे जैसे प्रथम महिला विद्यार्थी को पढाया और भारत के नारी के लिए
शिक्षा के द्वार खुले किये ,इनके साथ उनकी अर्धांगिनी माता सावित्री माई जी का
बहुत ही मूल्यवान योगदान है रहा। नारी उत्थान के लिए ।
हम आज जिनका टीचर डे ना कहकर शिक्षक दिन मनाने जारहे है वे है “महात्मा ज्योतिबा फुले” के शिक्षक दिन के
उपलक्ष पे सभी भारत के बहुजन को सदर नमन।
अब
हम उनका ही शिक्षक दिन किंव मनाये उनकी कुछ बाते याद रक्खे :
उनका नज्म ११ जुलाई १८२७ को हुवा था। जब वे
छोटे थे उसवक्त ही उनके माँ का देहांत हुवा ,उनका पारिवारिक फुल बेचनेका का धंदा था इसलिए उनका नाम फुले हुवा करता था।
उम्र के २१ साल में कक्षा ७ वि अंग्रेजी पास
किये थे । किंव की पहले वे स्कूल नहीं जाते थे ।
ज्योतिबा फुले को एहसास हो गया था कि ईश्वर के
सामने स्त्री-पुरुष दोनों का अस्तित्व बराबर है।
ऐसे में स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में
उन्हें पहचान दिलाने के लिए उन्होंने आपने ही घर में सन १८५४ में एक स्कूल खोला
दिया था . एक नहीं दो नहीं तिन स्कूल खुलवाये थे और उनका कारोबार सावित्री बाई
फुले को सौंपा थे।
ज्यातिबा फुले दलित उत्थान के हिमायती थे । उन्होंने
न सिर्फ विचारों से दलितों को सम्मान दिलाने की बात कही बल्कि अपने कर्मों से भी
ऐसा करके दिखाया। उन्होंने दलितों के बच्चों को अपने घर में पाला और उनके लिए
पानी की टंकी भी खोल दी। नतीजतन उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। लेकिन पाखंडी जातिवाद को कभी वह डरे नहीं ,आपना करवा आगे ले चले गए ।
समाज के निम्न तबकों, पिछड़ों और
दलितों को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले ने 'सत्यशोधक
समाज' की स्थापना की। उनकी समाज सेवा से प्रभावित होकर १८८८
में मुंबई की एक सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से नवाजा गया था ।
ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मण के
बिना ही विवाह आरंभ कराया. कुछ समय बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे मान्यता भी दी। यही
नहीं उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन और बाल विवाह का जमकर विरोध किया।
साल १८७३ में ज्योतिबा फुले की किताब 'गुलामगिरी'
प्रकाशित हुई । इसमें बताए गए विचारों के आधार पर दक्षिण भारत में
कई सारे आंदोलन चले। चलाये गए और गुलाम को गुलामी का एहसास करा दिया।
महात्मा ज्योतिबा फुले ने 'गुलामगिरी'
के अलावा 'तृतीय रत्न', 'छत्रपति शिवाजी', 'राजा भोसले का पखड़ा', 'किसान का कोड़ा' और 'अछूतों की
कैफियत' जैसी कई किताबें लिखीं और लोगोंको अँधेरे से बहार
निकला ..
महात्मा ज्योतिबा फुले ने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की थी और उन्ही के संघर्ष
की बदौलत सरकार ने “एग्रीकल्चर एक्ट” पास किया। था इसीलिए उन्हें भारत के
पितामः कहते है। उन्हीके उपलक्ष में शिक्षक दिन मनाया जाय ।