मुंग फल्ली की चोरी
येह सन १९७२ की बात है जब मै सात साल का हुवा करता था। मानवीय ज्ञान के मुताबिक बचोन्मे बचपन में देखे हुये और सुने हुये किस्से जैसे कथाये और कावितये भूल नही पाते । दादा दादी के किस्से ,और नाना नाणी के किस्से। और उन्होंने सुनाई हुयी कथाएं।
लेकीन मै जो यहा बताने जा रहा हुं। येह कोई कथा या कहानि का किस्सा है और न कथा का भाग है। येह मेरे जन्म दाता ,अन्नदाता पिताजीके साथ बीती हुई कहाणी है।
१९७२ में पुरे मराठवाडा ,(महाराष्ट्र ) विभाग में भारी वर्षा के कारण अकाल पडा हुवा था। कही का रखा नही था। महामाररी की आफत आ पडी थी। पुरे इलाखे में खाणे के लिये अनाज बचा नही था। खेती बह गयी थी। घर नदी नाले पानीसे बह गये थे। फिर भारत सरकार ने अकाल घोषित किया था ,विश्व के बहुत सरे देश ने मदत के श्रोत दिए थे उसमे अमेरिका पहिली लाइन पर था।
अमेरिका से धान और खाने की चीजे आती थी । इसमे सुगडी नाम का आटे जैसा पावडर था जो राशेन के दुकान में ही मिलता ,उसे गरम पाणी में उबाल कर खा लिया करते थे। वह शीरे जैसा बन जाता।
इसके साथ -साथ पिले रंग की “मिलो” नामक ज्वारी और “काटीजवा” जो गेन्हू के जैसा दिखाने वाला धान था। ज्वारी पिसणे के बाद पिले रंग का आटा निकाल आता था। इसलिये इसे पिली ज्वारी ही किया करते थे।
काटीजवा को कुटकर उपरवाला कवर निकालकर उसे भी गेन्हू जैसे दिखने वाले धान को पिसा करते थे। और उसी रोटी से गुजारा होता था।
कहते है की उस जमाने में जो धान अमेरिका से भारत में आता था , पावडर हो ,और कोई धान वहाँ के सुवर का अनाज था। वो अनाज उस दिन में खा लिया करते और गुजरा कर लेते। भारत वाशी।
वह दिन बुरे और बड़े कमाल के थे ? आज लोग पानी बैगैर मर रहे है और उस समय लोग पाणी के चलते मर रहे थे। नदी नाले में पाणी जो बहता था वह घर तक नदी की मछलिया ले आता। इतना पानी का बहाव होता था। खली मछलिया खाकर भी दिन निकला किया करते थे।
मेरे मातंग मोहले में एक मरीआई का छोटासा मंदिर था। मंदिर क्या एक छोटासा बैठेने लायक जगह था। उस मंदिर में रात में सभी मोहले के लोग जमा हो जाते और इस अकाल के बारे में मरीआई को दान मांगते ? की हे माँ कुछ कल के खाने का इंतजार कर ? बाते करते करते सभी का एक मत हो जाता की आज कहा चोरी करने चले जाना है।
जाने का ठिकान तय हो गया की आज कहा जाना है। और वह ठिकान था माली पाटिल का खेत। माली पाटिल का खेत पुरे गाँव में अलग -अलग जगह करीबन सौ एकड़ था। वह चार हिस्सो में बाटा हुवा था।
उनके तालाबा के पास जो खेत था , थोडा धरातल से ऊँचा और सुपिक होने के वजह से वहा थोड़ी मुंग फल्ली के खेती में उपज आयी थी। वहा जाने का पक्का हुवा।
मांग जमात जो ठहरी रामोशी। रामोसी के पूर्वज राजा -महा राजओंके के दरबार में सिपाही का कम किया करते थे। बड़े ताकत वर और कडवे थे। यह लोग बड़े हिम्मत वाले और शुर वीर भी थे। इनके पास कोई उत्पन्न का साधन नहीं था। न गांव घर था और खेतो में खेती थी। रोजी रोटी के लिए जो कम मिला वही किया करते थे। इन्हीके शोक निराले थे ,ये न आदिवाशी थे ,न बंजारन ,और न सुधरे हुए थे।
लेकिन अब वह दिन नहीं थे ,पेट के लिए रात में कभी चोरी किया करते। और दिन में बजा बजाना ,मजूरी का काम करना ,जो भी खेती में काम मिला वही किया करते। और कोई कलाकार भी थे। जैसे बजा बजाना और कला कुसर का काम करना। इनका काम पेट तक सिमित था। इन्हें कल के परवाह न थे।
कभी रात में खेतोंसे आनाज चुराना ,बैल -गाय के लिया कडबा चुराना ,और समय आने पर किसीकी मुर्गी या बकरी चुराना ,और मौका मिले तो गाय या भैस का बछडा चुरा कर घर ले आना। यह बड़े हिम्मत और हिकमत का कम था पर वह किया करते थे। किंव की पापी पेट का सवाल था। घर में सात आठ बाचे बीबी ? इन सबका कैसे गुजरा होता ? तो कोई काम नहीं होने से इनके पास चोरी एक मात्र साधन बचा था ?
रघुनाथ बढे होशियार और ताकतवर भी था। वह इस घटना का हिस्सा है। उनके पिताजी बड़े कारगर थे ,घर बनाने वाले उस इलाखे के एक मात्र मिस्त्री थे ,उनका नाम था ग्यानोबा। ग्यनोबा बड़े होने के कारण उनकी बात हर एक मान लिया करते थे ,उन्हें वाद्य में बहुत ही रूचि थी वह ट्रम्पेट से अछे -अछे गाने बजाय करते। उनका उस ज़माने में एक ब्रास बैंड भी हुवा करता था।
रघुनाथ भी उनकी रह पे थे लेकिन अलग किस्म के थे ,उन्होंने नांदेड में अपने गुरु से मिस्त्री काम की कला हासिल की थी और उनका नाम मुजावर।
रघुनाथ शादी के पहले पूर्वोतर राज्य के शिलोंग में मिलिट्री में फौजी के तौर पर भर्ती हुये थे ,मेरी दादी को किसीने कहा की ,”आर्मी में गया हुवा इन्सान कभी वापस नहीं आता ? ” उन्हें यह चिंता का विषय बना ,उन्होंने तलाठी ,गांव के मुखिया और ग्राम सेवक और सरपंच जरिये मिल्ट्री में कार्यवाई कर के ,कुछ लिखा पढ़ी करके घर बुला लिया और फिर उन्हें कभी वापस जाने नहीं दिया। उन्होंने बहुत कोशिश करने पर नकाम होगये ? और उनकी शादी एक अनपढ़ ,नीला के साथ होगयी।
उस दिन कुल मिलकर दस लोग चोरी करने निकले थे उनका इरादा पक्का था ,चोरी करकर कल के लिए कुछ ले आयेंगे तब चूल्हा जलेगा ?
तुकाराम ,नामदेव ,गोविन्द ,भिवाजी .संभाजी ,हरिबा ,गोपीनाथ ,दामोदर , तुल्शिरम,अर्जुन ,महादुअप्पा ,और रघुनाथ। इस खेमे में सबसे उम्र वाले तुकाराम थे और सबसे छोटे रघुनाथ था।
रात होगई अँधेरा छा गया ,आपने आपने सामान की तैयारी शुरू हो गयी ,जो घर में हतियार था वह कमर पर चढ़ा था ,कमर पे धोती जोरोंसे बंधी हुयी थी। और सर पर कला कफ़न।
पूरा खेमा अपनी रामोशी भाषा में बाते करते हुये ,माली पाटिल के खेत के और मोर्चा बोल पढ़ा ,करीबन रात के दो बज रहे होंगे।बाल बच्चे औरते नींद की खराटे ले रहे थे और खेमे के लोगोंका दिन निकल पढ़ा था।
सबने अपने आपने ताकत के हिसाब से पूरा मुंग फल्ली का खेत खाली किया था ,जैसे कोई पंछीयोंकी टोळ धाड होती है ,देखते देखते सब की बोरिया भर गयी थी। कोई खली हाथ न था। सब के बोरी में घास जैसी मुंग फल्ली भरी हुई खचा खच भरी थी।
एक एक करके चीटी के चाल से अपना घर का रास्ता पकडे हए थे। यह सोचकर की ,चलो कल घर में कुछ खाने को मिलेगा ? जैसे ही गाँव पहुँच गए ,सब बिखर गए। एक एक करके अपने घर में आने लगे। बिन आवाज दिए आपने आपने घर आये।
मै और मेरी छोटी बहन आशा के साथ एक छोटेसे घर में सोये हुये थे ,मेरी माँ सोयी नहीं थी ,दादा के आने के इंतजार में लेटी हुयी थी। समय समय पे घर में उठकर बैठा किया करती थी। उसे दादा की चिंता थी की वह कब घर आएंगे ?
दरवाजे की कड़ी अन्दर हात डालकर दादा जब आंदर आये तब माँ ने कहा की ,आगये क्या ? हां आगया बहुत देर लगाई आने में ?
दादा ने कहा बहुत कोशिश करनेके के बाद यह मिला देखो ? मुंग फल्ली का दाना ?
आपनी बोरी उतार ली ,वह थककर बैठ गए और माँ को पानी के लिए इशार किया ,और पानी पिते -पीते कहा की देखो निकालो इसमें कितनी मुंग फल्ली है। मै भी उस बोरी के पास गया ,और देखा तो मुझे वह बोरा हिला नहीं ,किंव की वहा खचा खच भरा हुवा था।
मै और मेरी माँ ने बोरे में भरे हुये सब वेल बहार निकलना शुरू किया और देखा तो ,मामूली से दाने दिखाई दे रहे थे
एक एक वेल को कम से कम एक मुंग फल्ली का दाना था ? माँ में निचले सौर में कुछ कहते हुये कहा की आपकी तो मेहनत बेकार चली गयी? इतना बोरा ढोकर ले आये हो कमसे कम इसे दाने लगे है क्या देखना था ?
दादा कहने लगे ,वहा क्या परख ने को समय था क्या ? कुछ मिला नहीं तो इसे ले आये है हम? और क्या करता ?
एक गोनी में कम से कम तीन चार किलो मुंग फल्ली मिली होगी ? दादा की मेहनत फस गयी थी ? हम सभी लोग सो गए ,जब सुबह हुयी तो ,मेरी दादी आयी और उसने सभी मुंग फल्ली के वेल , भैस को चारे के रूप में ले गयी ,हात आये कुल मिलकर चार किलो मुंग फल्ली के दाने ?
सुबह माँ ने कुछ मुंग फल्ली के दाने तवे पे भूनकर सबको खिलाया ,मैं स्कूल चला गया ,और दादा मजूरी का काम देखने बहार चले गए ,और माँ भी किसी के खेत में मजूरी का काम करने चली गयी ? दादा लौटकर घर आये ,कुछ काम न मिला ?
फिर आज रात में जाने के तैयारी में , दादा मरिआई के मंदिर चले गए, की कहा जाना है ?
23/02/2017 brs