Monday, June 8, 2020

तृष्णा ही जटाय !

तृष्णा ही जटाय !

मानव मुक्ति किस तरह हो इस माया जाल से और कौन है जो इस जटा से मुक्ति पते ? जो इसपर विजय पा सके ?


जो चार अरीय सत्य ,पंचशील,अष्टांगिक मार्ग और दश पारमी को जान सके और ध्यान कर पालन कर सके वही इस जटा से मुक्ति पा सके ?

"अन्तो जटा बहि जटा, जटाय जटिता पजा।"

एक समय भगवान श्रावस्ती में विहार करते थे। उस समय रात में किसी देवपुत्र ने भगवान के पास आकर अपना संदेह मिटाने के लिए पुछा-

"अन्तो जटा बहि जटा, जटाय जटिता पजा।
तं तं गोतम!पुच्छामि, को इमं विजटये जटं?"

भीतर जटा है,बहार जटा है,जटा से प्राणी जकड़ी हुई है, इसलिए हे गौतम! आप से पुछता हूँ कि कौन इस जटा को काट सकता है?

भगवान ने उसका उत्तर देते हुए कहा-

"सीले पतिट्ठाय नरो सपञ्ञो, चित्तं पञ्ञञ्च भावयं । आतापी निपको भिक्खु,
सो इमं विजटये जटं।।"

जो नर प्रज्ञावान है,वीर्यवान है, पण्डित है, भिक्षु है,वह शील पर प्रतिष्ठित हो, समाधि और प्रज्ञा की भावना करते हुए इस जटा को काट सकता है।

जटा का तात्पर्य है तृष्णा। क्योंकि तृष्णा जाल फैलानेवाली है। बार बार उत्पन्न होने वाली तृष्णा बाँस के झाड आदि के शाखा-जाल कहलाने वाली जटा के समान होने से जटा है। तृष्णा अपनी और पराई चीजों में, अपने और दूसरे के शरीर में, भीतर और बाहरी आयतनों में उत्पन्न होने से भीतर जटा है, बहार जटा है। उसके ऐसे उत्पन्न होने से प्राणी जटा से जकड़ी हुई है। इसलिए उसने पुछा कि इस जटा को कौन काट सकता है।

भगवान ने उत्तर में कहा- जो शील, समाधि और प्रज्ञा में प्रतिष्ठित वीर्यवान पण्डित व्यक्ति है वह तृष्णा रूपी जटा को काट सकता है।

"अयं एकायनो मग्गो।"
संसार के सभी दु:खों से मुक्ति पाने के लिए यही अद्वितीय मार्ग है। शास्ता बुद्ध ने तृष्णा का समुच्छेद करने के लिए शील समाधि और प्रज्ञा का आठ अंगों वाले धम्म का उपदेश दिया है।

"ये च धम्मा अतीता च,ये च धम्मा अनागता।
पच्चुपन्ना च ये धम्मा,अहं वंदामि सब्बदा।।"

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्म बुद्धस्स !

                                                                            प्रा.बालाजी शिंदे ,नेरूळ -७०६

                                                                              Mobile : 9702158564

                                                                            balajishinde65@gmail.com

 


स्पर्श 2

एक एहसास है जो बचपन से लेकर अंतिम सांस तक सचेत रहता है।

पहला स्पर्श माँ से होता है ,जन्म के तुरंत माँ अपने औलाद को स्पर्श करती है तो उसे लगता है कि उसका जीवन सफल हुवा ,और वह माँ का रूप धारण करती है।
बच्चा अपने माँ के स्पर्श से ही माँ की पहचान बना लेता है ,देखकर ,सुनकर,और आवाज से उसे सुख तो मिल ही जाता है।लेकिन जब माँ स्पर्श करती है।तो बहुत खुश और सचेत रहता है।माँ के गोदी में सोना ,सोते सोते दूध पीना और अछिशी नींद पा लेना ,स्पर्श से ही माँ के पूरे बदन पर खुद खेल ते रहता है। माँ के स्पर्श का अन्य चार गुनोसे सौ गुना लेता है।उसके ग़लोंको हात लगाना ,बलोंको खीचना। आदि .
लेकिन माँ भी उसके स्पर्श को उतानी ही उतावली रहती है। माथे पे चुम लेना ,गाल नोचना ,और नहाते -सोते समय पूरे बदन की मालिश करना ,दोनों को एक स्पर्श का आनंद मिलता है।

जैसे जैसे बालक की उम्र बढ़ जाती है उसकी स्पर्श की परिभाषा बदल जाती है।
पिताजी ,चाचा ,चाची नाना नानी इन्ही के अंग पे खेल खुद कर स्पर्श की दृढ़ता हो जाती है।

इस स्तिथि के बाद जो बालक कदम लेता है वह एक नाजुक मोड़ है ,इस मोड़ में वह आपने पियर ग्रुप में शामिल हो जाता है।
आपने माय अंग या गुप्तांग को जानने की कोशिश करता है। और उतावलापन आजाता है .
लड़का -लड़की अपने अंग को स्पर्श करके अपने अंग को देखकर बार बार जानने की कोशिश करते है,और स्पर्श की भावना जागृत होती है। यहाँ धोके की घंटा दोनों के मन मे आजाती है।
जब स्पर्श न हो तो उस मन से छूनेकी लालसा बढ़ जाती है।

स्पर्श के साथ ,बातें ,और देखने का नजरिया एक मकाम के ओर ले जाता है।
जब शादी की उम्र आ जाती है तो स्पर्श का अर्थ और एहसास बदल जाता है।
पति पत्नी में ही स्पर्श एक रोज का एहसास प्रेम या वीर रस को बढ़ावा देने का मुख्य काम करता है।

शादी के बाद अगर स्पर्श का एहसास न हो तो वह प्रेम और शादी एक नरक बन जाती है।दोनों पति पत्नी एक साथ सो तो जाते है एक ही शय्या पर पूरी रात स्पर्श नही करते है तब ,एक दूसरे के जीवन मे तान तनाव आजाता है ।

जैसे ढेर सारी बातें हो ,शरीर की हलचल हो ,घर किचन में बातों के साथ स्पर्श की बातें हो तो वह अंतिम सुख को काम आजाती है।अगर औरत इन बातोंको इनकार करती है,या इन बातोंको पाप या गलत समज लेती है तो एक तो वह आपसे चाहती नहीं है,या आपके साथ एक अलग से रिश्ता रखना चाहती है।समाज को दिखाने को एक पति की जरूरत पूरी कर लेती है।
और आपके सुख में बाधा पैदा करती है। यह संबंध वाद विवाद और घर में सुख शांति पैदा करता है .
अगर यह स्तिथि कायम हो तो ,इंसान बाहर के स्पर्श को ढूंढता रहता है । किंव की वह स्पर्श का सुख आपने ही घर मे नही पता।ठीक उशी तरह औरत भी अपना रास्ता ढूंढ लेती है। इसलिए पति –पत्नी में रोज और कायम स्पर्श होना बहुत अहमियत रखता है।

घर परिवार में पत्नी और पति में ढेर सारी बातें हो,बातोंसे परिणाम निकल आते है।बातों बातों में एक दुसरोंको सही आत्मीयता से देखने की गरिमा बढ़ जाती है।और पति पत्नी में विश्वास बढ़ जाता है और प्यार की दृढ़ता भी बनकर एक दूसरे से सच्चा प्यार पाते है।
बातोंसे ,देखने से फिर आखरी स्पर्श की बारी आजाती है ।इन दोनों के स्पर्श से अंतिम प्यार और सच्चे प्यार में बदलाव आजाता है। सच्चे प्यार और पानेके लिए स्पर्श ही काफ़ी है।

आपकी नोकरी धन दौलत तो एक बाहरी देखावा है ।इन सब को सचेत रखने के लिए पति पति में 'स्पर्श कायम' होना बहुत ही अहमियत रखता है।

जिस घर मे स्पर्श की परिभाषा का विकास नही हुवा हो,वह घर उध्वस्त है। एक दूसरे में चिड़चिडापण ,रोज का झगड़ा ,और इन सभी का आपने घर परिवार पे बुरा असर होता है। कभी कही एक दूसरे पे शक करना,यह बच्चा मेरा नही है।यहाँतक की झगड़े की नौबत आजाती है।और कभी कभी अलग होनेकी सम्भवना दृढ़ हो जाती है।

अगर येही स्पर्श बाहर कही हो जाता है तो कयामत छा जाती है। किंव कि वह एक पराया स्पर्श होता है।वह फिर दूसरोंकी बीवी हो या पति हो।लेकिन यह स्पर्श कायम वास्तव में नही रहता,कभी कभी धोका देता है,या फिर टूट जाता है।इस स्पर्श को समाज मान्यता नही है।इसलिए यह स्पर्श चोरी छुपे हो जाता है। इस मोड़ पर न आये इसलिए पति पत्नी में कायम और मुलायम स्पर्श होना जरूरी है।

दोनों बाजू का पर्याय स्पर्श समाज मान्यता न होनेपर भी कभी कभी कायम और अंतिम सांस तक चल भी जाता है। आपने घर परिवार में आपने ही बीवी या पति से स्पर्श का सुख न मिले तो बाहर के स्पर्श का रुख बदल जाता है ,और बार बार उसे पानेकी लालसा बन जाती है। स्पर्श जितना सख्त,मुलायम और देर तक रहेगा तो वह दिलो दिमाग मे कायम घर कर लेता है ।आपने पराये बन जाते है,और पराया स्पर्श अपना बन जाता है।
सिर्फ घर मे रह जाते है दो बदन कोई गॉसिप कोई मन की बात नही हो जाती।फिर काम काज की बाते रह जाती है।अपना पन खत्म हो जाता है।रहते है सिर्फ नाम के मिया और बीवी।

पराया स्पर्श घर परिवार में आनेसे घर की खुशियां चली जाती है।परिवार ,बच्चे इनपर भी असर हो जाता है।एक दूसरोंसे बहुत ही दूर चले जाते है।कभी न वापस आने के लिए।

पति पत्नी में स्पर्श बढ़ाना हो तो किंव न हम उसे आपने घर से शुरुवात करे।घर मे हो तो कभी कभी एक दूसरोंको छुए,गाल नोचे ,बालोंमें उंगलिया घुमाए,बैठे बैठे हाथ पकड़ ले, सुबह साथ नहाए,ताकि एक दुसरेकी चाहत बढ़े और अस्पर्श की भावना खत्म हो। एक दूसरोंके बालो में तेल लगाएं ,और कंगी घुमाए। हो सके तो दोनों किचेन में खाना बनाने को जाए ,नजदीकियां बढ़ जाये तो स्पर्श भी बढ़ने लगता है।इन्ही सभी बातोंका स्पर्श आपके प्यार को चार चांद लगा लेता है।
घर परिवार में कभी अकेला पन मिल जाये तो एक दूसरे की गले मे बहे डालकर तोड़ा रूमानी होंजाये,थोड़ा डांस भी करे। संडे के दिन और छुट्टि के दिन सुबह पूरे बदन पर तेल लगाकर मोलिश करे,इन्ही स्पर्श में गॉसिप करते है ,और स्पर्श की लालसा बढ़ेगी और आपका प्यार और मजबूत हो जाएगा ।
छुटी के दिन बाहर सेहर पर चले जाएं,पब्लिक वाहन का भी थोडा उपयोग किया जाय ,जैसे रिक्शा और कार की सफर जदि हो ताकि स्पर्श जादा हो। समंदर पे घूमने जावो ,हात में हात लेकर देर रात तक घूम कर। इससे अंग की गरिमा मिले तब स्पर्श की भावना दृढ़ हो जाये। और आखरी स्पर्श का सुख ले .
यह सभ तजर्बे अपनाने के लिए एक दूसरेका साथ होना बहुत जरूरी है,वरना कोई आपने घर परिवार में दूसरा रुदयस्पर्शी बनके न आये और आपने कानो कान खबर न हो जाये। इसिलए 'आपने पत्नी,या पति से स्पृश सतत और हमेशा बनाये रखे।

काम तनाव से बहुत सी पत्नी और पति एक दूसरोंको इस स्पर्श का एहसास नही दे पाते वही एक दूसरे को सुख नही दे पाते। यह एक आज के घडी का भयावह चित्र है .
इन्ही समश्या को दूर करनेके लिए उपरोक्त सभी प्रकार के कारण आजमाना चाइये। और एक दुसरोंको जादा से जादा समय दे .

साथ में रहना स्पर्श करना यह शरीर के सुख का अंग नही है।फिर भी एक ही पलंग पे सोते है तो बाते करते करते स्पर्श करके सो जाईये सुख मिलेगा ,यहाँ सम्भोग की भावना का सवाल ही नही आता।
कभी कभी आदमी की शरीर भावना तो स्पर्श से शुरुवात होती जरूर है,लेकिन ऐसा नही की आपकी बिवि आपको संभोग करने दे।संभोग एक दिमाग की भावना है।स्पर्श एक एहसास है।यह एहसास हमेशा नही होना चाहिए और वासना भी नही होनी चाइये,वह आपकी बीवी किंव न हो। लेकिन स्पर्श का एहसास जरूर हो।रोज सदाके लिए और कायम। किंव की दोनोके स्वस्थ के लिए शास्त्रीय दृष्टिकोण से उचित है। जैसे स्पर्श होने से शरीर का रक्त स्रव कायम रहता है,उसका नतीजा यह होता है ।आपको शुगर,की बीमारी नही होगी और हार्ट अटैक कभी नही होगा। आप अगर रोज या सप्ताह में तीन बार शरीर सुख पाते हो या देते हो तो आपका बदन का व्यायाम और आयाम ठीक रहेगा ,और आपको बीमारी कभी छुने का नाम नही लेगी।

पूर्वी स्पर्श
पूर्वी स्पर्श जो इंसान के भूले भिचड़े पल में हो जाता है।कभी भूल कर तो कभो अनजाने में कभी जानबूझकर या कभी जबरदस्ती हो या ,किसीसे अनजाने में प्यार होने से।
बहुत से लोगोंको बचमन में कभी स्पर्श हो जाता है और स्पर्श का दायरा बढ़ जाता है।
वह स्पर्श पहला होने से उम्रभर तकलीफ देता है। अगर प्यार टुटा हो तो?

जबरदस्ती से किया हुवा स्पर्श एक मजबूर कर देता है ,कोई जानबूझकर स्पर्श करता है।और जबरदस्ती से स्पर्श का अभ्यास मन मे पैदा कर देता है। वह स्पर्श भूलकर भी भुला नही जाता ।उसे लाख कोशिश के भी दिलो दिमाग से बाहर नही निकल जाता । इसलिए कि वह एक डरावना स्पर्श होता है।
बचपन मे कोई धुश लगाकर पास आकर स्पर्श करनेकी कोशिश करता है।और वह हमारे इछाओंके शिवाय होता है इसलिए वह पल डरावना और घटिया लगता है।
कभी अपना कभी रिस्तेमे ,या कभी पराया स्पर्श करने की कोशिश करता है,और वह कामयाब भी हो जाता है ।ऐशी स्पर्श की भावना दिल और मन को ख़राब कर देती है
फिर किसके स्पर्श की भावना मन मे नही आती।किसीको छुने की भावना और इच्छा मर जाती है।वह स्पर्श की भावना पुनःह जन्म नही लेती।म इसे भी पहला स्पर्श कहाँ जाय. फिर भी पूर्वी स्पर्श भूल जाना ही बेहतरीन होता है।
लेकिन पहला स्पर्श भूल जाना बहुत ही कठिन है। फिर भी इंसान भूल जानेकी कोशिश जरूर करता है।लेकिन कभी कभी फिर से अच्छी स्पर्श की बात बन जाती है तो वह भूल जाता है।भूल जानेकी कई मजबूरी भी बन जाती है।



प्रा बालाजी रघुनाथराव शिंदे

विस्तार सेवा सहाय्यक ( विशेष शिक्षा )

विस्तार सेवा विभाग ,अ.या.ज.रा.वा.श्र.वि.संस्था ,बांद्रा (प) मुंबई ५०

balajiayjnihh@gmail.com

balajirshinde.blogspot.com

www.ayjnihh.nic.in

‘एक “ति”चं आसण !

‘एक “ति”चं आसण

“ति”चं आसण ही एक मनात आणि घरात एक उत्तम सहवास निर्माण करणारी एक अविभाज्य आणि  अभेद्य निर्वात पोकळी आहे .इथे असणे आणि नसणे या दोन गोष्टी या विरुद्ध टोकाच्या आहेत .”ती” चा सोबत लग्नांनतर प्रत्येक व्यक्तीच्या साथीला आयुष्याला असतो .

इथे मी “ती” घरात असून नसल्याचा भास आणि इतरत्र कशी मनात पोकळी निर्माण होते हे आपणास माझा अनुभव इथे विशद करीत आहे .

राधा गेली ,महिनाभर बेचैन आहे ,अचानक मुतखडा असल्याचे निदान झाल्यामुळे महिनाभर ती त्रास सहन करते आहे ...दरम्यान चार डॉक्टर बधून झाले ..आणि यात एक महिना निघून गेला .

डॉक्टरच्या सल्ल्यानुसार ऑपरेश हा एकच पर्याय राहिला म्हणून ती खूप तणावाखाली होती ..एके दिवशी तिने ऑपरेशन करून घेण्याचा निर्णय स्वतः घेतला आणि मानाने तयार झाली. शनिवारी सांयकाळी वाशी सेक्टर १० मध्ये संपूर्ण रिपोर्ट दाखऊ असे म्हणत मला थेट शाळेत घेऊन गेली आणि त्याच दिवशी ऑपरेशन करून घेण्याचा निर्णय हि घेतला . १२ ऑक्टोबर ला तिने खडा काढून घेतला .

  तीन दिवसाने सुखरूप घरी आली ...एकदम निस्तेज पावलाने . ती खूप व्याकूळ झाली आणि थकली .एवढी निस्तेज आणि व्याकूळ झालेली मी तिला आजच बघतो आहे .घरी आल्यावर एकदम तिच्या अंगात त्राण उरला न्हवता  .सतत तीन दिवस ओकारी करीत राहिली ,अन्न पाणी वर्ज केली म्हणून दिलेली औषधे टाळू लागली.आणि यातच ती एकदम विक झाली  ..दरम्यान रजेवर होती ,आणि पुढच्या आठवड्यात कुमुद शाळेला दिवाळी सुट्टी लागणार होती .

एरवी कंबर कसून लक्ष्मी सारख्या हातातील बांगड्या मागे सारत सकाळी सहा च्या घटके पासून किचन मध्ये मला दिसणारी ती दिसत नाही हे जाणीव मला तीव्र वेदना करीत होती .या वेळेला ती अशीच जोपून राही .मी पण तिची काळजी घेण्यासाटी सुट्टीवर होतो ...ती कांही खातच नाही हे बघून माझा जीव भांड्यात पडत असे ..

नाश्ता ,जूस आणि तिला विचारून अनेक प्रकार मी आणि माझ्या माय ने तयार करून दिले पण ती खातच न्हवती. .. आम्ही दोघे एकमेकाकडे बघून धीर धरून होतो .आज मितीला माझी माय नसती तर माझे काय हाल असते ते विचार करावसं वाटत नाही ? . शेवटी माय ते माय ,तिची सर कोणाला नाही ? माझ्या माय ने खूप तिची सेवा केली .हे कित्तेक वेळा आम्ही आजमावले आहे .

  घरात आम्ही कोणी आजारी पडले कि तिला कुठून हिम्मत येते माहित नाही वय सत्तर पार करून हि ती अजून कणखर आहे ...”न सुगर न बिपी” .अशी आई घरो घरी असावी .आम्ही चौघे भावंडे पण तिला इकडेच माझ्याकडे राहावेशे वाटते ,माझे दादा आम्हाला सोडून गेल्या पासून .

“ती” गेली दोन आठवडे फक्त विचार आणि विचार करत होती ,झोपण्याचा बहाणा पण ती डोळे बंद करून नुसती पडून राहत असे .माझा मुलगा आदित्य युके वरून तेंव्हा मायदेशी घरी आली तेंवा ती बरी होऊ लागली .हळू हळू सकाळी नाश्ता करू लागली आणि परत दिलेल्या गोळ्या घेऊ लागली ...पण तीन दिवसाने तिने मला आदेश दिला कि त्या गोळ्या नकोत ,कचर्यात टाकून द्या ! ‘म्हणून तिने परत गोळ्याकडे पाठ फिरवली ..

“ती”चा  घरात वावर असणे किती सुखकारक असतो तो “त्या”लाच कळते ,बाकी सगळा माया बाजार आहे ,मुल –बाळ ,नातेवाईक फक्त क्षणाचे सोबती असतात. ती अबोल असण ,किंवा अन्थूरनात दिवस रात्र पडून राहणे कूप काळीज पिळून काढत हो .इथे भावना व्यक्त करण्यास भाषा कमी पडते .

एरवी दिवाळी सणांना अनेक प्रकारच्या खाऊ ने भरलेले डबे या दिवाळीत  रिकामे आहेत ,ती मनात खूप इच्छा असताना हि ,अबोल झाली आहे .मोठा मुलगा आपल्या मायदेशी परत येण्याने  तिचे मन मुरेजून गेले आहे कारण त्याच्या आवडीचे फराळ ती करू शकत नाही म्हणून. अमर्त्य आणि आदित्य आणि मला आवडणारे पाधार्त न करता आल्याचा चेहरा मी रीड केला आणि मनातल्या मनात बांधून ठेवला.मी म्हणालो अगोदर बरी हो मग खूप फराळ कर ,तुला खावासा वाटेल ते ,आम्ही सगळे आहोत न तुला मदत करायला ..तेंव्हा ती गालात हसून आम्हाला साथ दिली तिने .

गेली पंचवीस वर्ष खूप कष्ठ केले तिने  “ति”चा सुखद सहवास मला लाभला कधी थकलेली मी पहिली नाही तिला ,पण आपल्या स्वतःच्या हलक्या शारीरिक व्याधी मुळे कधी चिडचिड होते पण थकत नाही .परत नव्या उमेदीने कामाला लागते .हा तिच्या मनातील  मोठ्या मनाचा कप्पा सतत ओपेन असतो .

ती आजारी असल्या पासून माझे पण मन खूप बेचैन ,कामात किंवा इतरत्र लक्ष लागत न्हवते...“ती ” आज मितीला बऱ्या पैकी रीकवर झाली आहे. मी चेहरा रोज सकाळ-संध्याकाळी  रीड करीत असतो .आणि यामुळे माझ्यात थोडी टाकत वाढत चालली आहे.आता ती बरी होत आहे ...

प्रत्येक पुरुषाला वाटते कि आपली “ती” सुदर आणि सशक्त असवी ,साहजिकच मला पण त्या हि पलीकडे वाटते .पण वास्तवात तसे नसते ,एकमेकाला समजून घेणे यातच दोघांचे गुण्या -गोविंदाने सोबत राहणे यातच दोघांचे गुपित असते ,आणि हे प्रत्येक घरात असावे .....’एक “ती” चे असणे !  

  प्रा. बालाजी रघुनाथराव शिंदे \ राधा \ ०६ नोवेंबर २०१९




#लाईफ_वार्निंग_बेल

  #लाईफ_वार्निंग_बेल .. .. .. प्रा. बा.र .शिंदे लिखने की वजह ये है की ,आप लोग सभी एप और मीडिया से सतर्क रहे । इसी महीने मे मेरे परिचय के कर...