Monday, May 21, 2018

बाल्या एक अद्भुत नावं


बाल्या
२१ में २०१८
माझे हाळी गाव हे आंध्रप्रदेश आणि कर्नाटक राज्यांचे सिमे लागत आहे ,उदगीर तालुक्यापासून जेमतेम १७ किलो मीटर .म्हणून या दोन्ही राज्याचा या तालुक्यावर खूप प्रभाव जाणवतो .हाळी हे नांदेड बिदर रोड वरील छोटस गाव एक पाय रोडच्य कडेला टाकला की हळी आणि दुसऱ्या कडेला रस्ता ओलांडला की हांडरगुली .जसे उत्तर आणि दक्षिण कोरिया .जसे जर्मन मधील भिंत तीच एक रस्ता .नाव हळीचे जानावारांचा जंगी बाजार ,पण बाजार भरतो हांडरगुली मध्ये .
मांगवाड्यात अंधश्रध आणि अशिक्षित पण शिगेला पाहुण्चला होता .भूमिहीन शेतमजूर तरी देव धर्माची वारी नित्य नेमाने करीत असत .मलंग गड ,त्यात मग बडा पहाड  जाऊन बकरे कापण्याचा नावस करणे ,आणि शेवटचा कळस म्हंजे तिरुपतीला देव दर्शन करून केस कापून मुंडन करणे ,आणि येताना मुलाचे नाव बालाजी ठेवेन असा नवस करून डोक्याला गाठ बांधून येणे .त्याचीच प्रचीती म्हणजे घरो घरी दिसणारा बालाजी होय .सख्खा भाऊ देखील आपल्या मुलाचे नाव बालाजी ठेवीत असे .  
बाल्या म्हणजे बालाजी .आमच्या मांग वाड्यातील घरो घरी मिळणारे हे नाव .काय उपकार आहेत तिरुपती बालाजी चे ,कांही अर्थ नसताना प्रत्येक उट सूट तिरुपती बालाजी चे नाव ठेवतो .
या नावाची मजाच और आहे .आता घरो घरी नाव असल्याकारणाने ओळखायचे कसे ? एखादी गल्लीत घटना घडली की लगेच कोणता बाल्या होता रं ? अशी सगळ्या बायकात आणि माणसात इत उत्सुकता लागत असे .
‘आलो ताई ,मी बालाजी बोलत आहे ,मग आवाज ओळखीचा नसेल तर समोरून लगेच उत्तर येई ..
कुणाचा बालाजी ? तेंव्हा लगेच प्रतिउत्तर द्यावे लागत असे ...की आमुक तमुक चा बालाजी बोलतो आहे .त्यानंतर संभाषण सुरु .
आम्ही लहान असताना कसे ओळखत आसू .ती एक गमंत होती .मांग वाड्यात तील आळी होत्या ,वारला कडील बाल्या ,खालच्या आळीचा बाल्या .आणि मधल्या गालीचा बाल्या .हळू हळू गल्ली चा  विस्तार झाला नि घरे विखुरली गेली .
नंतर च्या काळात प्रत्येक बालाजी ला टोपण नावे पडली ,कांही नवे त्यांच्या विकृती आणि रंग छटा आणि एकंदरीत हालचाली वरून बालाजी नवा पुढे टोपण नावे पडली .
एक बालाजी जो नेहमी डोक्यात हात लावून ऊ मारल्या सारखा करीत होता .त्याचे नाव चेंगरया बाल्या पडले ,एक बालाजी छोटा  उंच आणि क्रकश लुन्द्री बाल्या म्हणून ओळखू लागले .एक बालाजी बाजारात इकडे तिकडे फिरत असताना रस्त्यावर बसलेल्या फेरीवाल्याचे  चणे उचल ,एखादे केळ उचल ,किंवा एखादा फळ उचलून लकबीने खिशात ताकत असे ,तेंव्हा आम्हाला आर एस एस सारखी लांब लाब खिसे असलेली खाकी  चड्डी होती .त्यात बऱ्याच वस्तू चोरून घरी आणता येत असे .म्हणून या बाल्याचे नाव उचल्या बाल्या पडले होते .कुती बाल्या पण होता ,त्याचा घरी त्याच्या बापाने एक  कुत्री पाळली होती म्हणून त्याचे नाव कुती बाल्या असे पडले .एक बालाजी होता दिसायला एकदम पहिलवान ,उंच आणि गोरा गोमटा पण आकल शून्य होता ,म्हणून त्याला सर्वजन भद्दा बाल्या म्हणून ओळखत असत ,यात बरेच बालाजी अस होते की त्यांना टोपण नाव न्हवते ,त्यात माझा पण नंबर वरचा येतो ,एकदा मी शाळा सोडून शिरूर या गावी पळून गेलो होतो ,आणि मला तेथून कसाराच्या मामू ने धरून आणून माझ्या आईच्या स्वाधीन केले होते .त्या दिवसापासून माझे नाव शिरूळया असे पडले होते .बरेच बालाजी हे आपल्या वडिलांच्या नावाने ओळखत असत. उदा रघु चा बाल्या ,भगू चा बाल्या .
असे होते बालाजी कांही बालाजी आज पडद्या आड गेले आहेत लहान आठवले की सगळे बालाजी कसे होते एकत्र विटी दांडू खेळणे ,गोट्या खेळणे नदीत विहरीत पोहायला जाने .खूप खेळ खेळणे आणि मारामारी पण .ते सर्व बाल्या परत भेटतील का ? कधीच नाही ? कारण आज ते शिकून शहाणे झाले आहेत .आपल्या रहाट गाऱ्हाण्यात दंग झाले आहेत ,शहरी कारणाने गावी कधी मिळणार नाहीत .

Thursday, May 17, 2018

स्पर्श एह एहसास

स्पर्श

एक एहसास है जो बचपन से लेकर अंतिम सांस तक सचेत रहता है।
                      
पहला स्पर्श माँ से होता है ,जन्म के तुरंत माँ अपने औलाद को स्पर्श करती है तो उसे लगता है कि उसका जीवन सफल हुवा ,और वह माँ का रूप धारण करती है।
बच्चा अपने माँ के स्पर्श से ही माँ की पहचान बना लेता है ,देखकर ,सुनकर,और आवाज से उसे सुख तो मिल ही जाता है।लेकिन जब माँ स्पर्श करती है।तो बहुत खुश और सचेत रहता है।माँ के गोदी में सोना ,सोते सोते दूध पीना और अछिशी नींद पा लेना ,स्पर्श से ही माँ के पूरे बदन पर खुद खेल ते रहता है। माँ के स्पर्श का अन्य चार गुनोसे सौ गुना लेता है।उसके ग़लोंको हात लगाना ,बलोंको खीचना। आदि .
लेकिन माँ भी उसके स्पर्श को उतानी ही उतावली रहती है। माथे पे चुम लेना ,गाल नोचना ,और नहाते -सोते समय पूरे बदन की मालिश करना ,दोनों को एक स्पर्श का आनंद मिलता है।

जैसे जैसे बालक की उम्र बढ़ जाती है उसकी स्पर्श की परिभाषा बदल जाती है।
पिताजी ,चाचा ,चाची नाना नानी इन्ही के अंग पे खेल खुद कर स्पर्श की दृढ़ता हो जाती है।

इस स्तिथि के बाद जो बालक कदम लेता है वह एक नाजुक मोड़ है ,इस मोड़ में वह आपने पियर ग्रुप में शामिल हो जाता है।
आपने माय अंग या गुप्तांग  को जानने की कोशिश करता है। और उतावलापन आजाता है .
लड़का -लड़की अपने अंग को स्पर्श करके अपने अंग को देखकर बार बार जानने की कोशिश करते है,और स्पर्श की भावना जागृत होती है। यहाँ धोके की घंटा दोनों के मन मे आजाती है।
जब स्पर्श न हो तो उस मन से छूनेकी लालसा बढ़ जाती है।

स्पर्श के साथ ,बातें ,और देखने का नजरिया एक मकाम के ओर ले जाता है।
जब शादी की उम्र आ जाती है तो स्पर्श का अर्थ और एहसास बदल जाता है।
पति पत्नी में ही स्पर्श एक रोज का एहसास प्रेम या वीर रस को बढ़ावा देने का मुख्य काम करता है।

शादी के बाद अगर स्पर्श का एहसास न हो तो वह प्रेम और शादी एक नरक बन जाती है।दोनों पति पत्नी एक साथ सो तो जाते है एक ही शय्या पर पूरी रात स्पर्श नही करते है तब ,एक दूसरे के जीवन मे तान तनाव आजाता है ।

जैसे ढेर सारी बातें हो ,शरीर की हलचल हो ,घर किचन में बातों के साथ स्पर्श की बातें हो तो वह अंतिम सुख को काम आजाती है।अगर औरत इन बातोंको इनकार करती है,या इन बातोंको पाप या गलत समज लेती है तो एक तो वह आपसे चाहती नहीं है,या आपके साथ एक अलग से रिश्ता रखना चाहती है।समाज को दिखाने को एक पति की जरूरत पूरी कर लेती है।
और आपके सुख में बाधा पैदा करती है। यह संबंध वाद विवाद और घर में सुख शांति पैदा करता है .
अगर यह स्तिथि कायम हो तो ,इंसान बाहर के स्पर्श को ढूंढता रहता है । किंव की वह स्पर्श का सुख आपने ही घर मे नही पता।ठीक उशी तरह औरत भी अपना रास्ता ढूंढ लेती है। इसलिए पति –पत्नी में रोज और कायम  स्पर्श होना बहुत अहमियत रखता है।

घर परिवार में पत्नी और पति में ढेर सारी बातें हो,बातोंसे परिणाम निकल आते है।बातों बातों में एक दुसरोंको सही आत्मीयता से देखने की गरिमा बढ़ जाती है।और पति पत्नी में विश्वास बढ़ जाता है और प्यार की दृढ़ता भी बनकर एक दूसरे से सच्चा प्यार पाते है।
बातोंसे ,देखने से फिर आखरी स्पर्श की बारी आजाती है ।इन दोनों के स्पर्श से अंतिम प्यार और सच्चे प्यार में बदलाव आजाता है। सच्चे प्यार और पानेके लिए स्पर्श ही काफ़ी है।

आपकी नोकरी धन दौलत तो एक बाहरी देखावा है ।इन सब को सचेत रखने के लिए पति पति में 'स्पर्श कायम' होना बहुत ही अहमियत रखता है।

जिस घर मे स्पर्श की परिभाषा का विकास नही हुवा हो,वह घर उध्वस्त है। एक दूसरे में चिड़चिडापण  ,रोज का झगड़ा ,और इन सभी का आपने घर परिवार पे बुरा असर होता है। कभी कही एक दूसरे पे शक करना,यह बच्चा मेरा नही है।यहाँतक की झगड़े की नौबत आजाती है।और कभी कभी अलग होनेकी सम्भवना दृढ़ हो जाती है।

अगर येही स्पर्श बाहर कही हो जाता है तो कयामत छा जाती है। किंव कि वह एक पराया स्पर्श होता है।वह फिर दूसरोंकी बीवी हो या पति हो।लेकिन यह स्पर्श कायम वास्तव में नही रहता,कभी कभी धोका देता है,या फिर टूट जाता है।इस स्पर्श को समाज मान्यता नही है।इसलिए यह स्पर्श चोरी छुपे हो जाता है। इस मोड़ पर न आये इसलिए पति पत्नी में कायम और मुलायम स्पर्श होना जरूरी है।

दोनों बाजू का पर्याय स्पर्श समाज मान्यता न होनेपर भी कभी कभी कायम और अंतिम सांस तक चल भी जाता है। आपने घर परिवार में आपने ही बीवी या पति से स्पर्श का सुख न मिले तो बाहर के स्पर्श का रुख बदल जाता है ,और बार बार उसे पानेकी लालसा बन जाती है। स्पर्श जितना सख्त,मुलायम और देर तक रहेगा तो वह दिलो दिमाग मे कायम घर कर लेता है ।आपने पराये बन जाते है,और पराया स्पर्श अपना बन जाता है।
सिर्फ घर मे रह जाते है दो बदन कोई गॉसिप कोई मन की बात नही हो जाती।फिर काम काज की बाते रह जाती है।अपना पन खत्म हो जाता है।रहते है सिर्फ नाम के मिया और बीवी।

पराया स्पर्श घर परिवार में आनेसे घर की खुशियां चली जाती है।परिवार ,बच्चे इनपर भी असर हो जाता है।एक दूसरोंसे बहुत ही दूर चले जाते है।कभी न वापस आने के लिए।

पति पत्नी में स्पर्श बढ़ाना हो तो किंव न हम उसे आपने घर से शुरुवात करे।घर मे हो तो कभी कभी एक दूसरोंको छुए,गाल नोचे ,बालोंमें उंगलिया घुमाए,बैठे बैठे हाथ पकड़ ले, सुबह साथ नहाए,ताकि एक दुसरेकी चाहत बढ़े और अस्पर्श की भावना खत्म हो। एक दूसरोंके बालो में तेल लगाएं ,और कंगी घुमाए। हो सके तो दोनों किचेन में खाना बनाने को जाए ,नजदीकियां बढ़ जाये तो स्पर्श भी बढ़ने लगता है।इन्ही सभी बातोंका स्पर्श आपके प्यार को चार चांद लगा लेता है।
घर परिवार में कभी अकेला पन मिल जाये तो एक दूसरे की गले मे बहे डालकर तोड़ा रूमानी होंजाये,थोड़ा डांस भी करे। संडे के दिन और छुट्टि के दिन सुबह पूरे बदन पर तेल लगाकर मोलिश करे,इन्ही स्पर्श में गॉसिप करते है ,और स्पर्श की लालसा बढ़ेगी और आपका प्यार और मजबूत हो जाएगा ।
छुटी के दिन बाहर सेहर पर चले जाएं,पब्लिक वाहन का भी थोडा उपयोग किया जाय ,जैसे रिक्शा और कार की सफर जदि हो ताकि स्पर्श जादा हो। समंदर पे घूमने जावो ,हात में हात लेकर देर रात तक घूम कर। इससे अंग की गरिमा मिले तब स्पर्श की भावना दृढ़ हो जाये। और आखरी स्पर्श का सुख ले .
यह सभ तजर्बे अपनाने के लिए एक दूसरेका साथ होना बहुत जरूरी है,वरना  कोई आपने घर  परिवार में दूसरा रुदयस्पर्शी बनके न आये और आपने कानो कान खबर न हो जाये। इसिलए 'आपने पत्नी,या पति से स्पृश सतत और हमेशा बनाये रखे।

काम तनाव से बहुत सी पत्नी और पति एक दूसरोंको इस स्पर्श का एहसास नही दे पाते वही एक दूसरे को सुख नही दे पाते। यह एक आज के घडी का भयावह चित्र है .
इन्ही समश्या को दूर करनेके लिए उपरोक्त सभी प्रकार के कारण आजमाना चाइये। और एक दुसरोंको जादा से जादा समय दे .

साथ में रहना स्पर्श करना यह शरीर के सुख का अंग नही है।फिर भी एक ही पलंग पे सोते है तो बाते करते करते स्पर्श करके सो जाईये सुख मिलेगा ,यहाँ सम्भोग की भावना का सवाल ही नही आता।
कभी कभी आदमी की शरीर भावना तो स्पर्श से शुरुवात होती जरूर है,लेकिन ऐसा नही की आपकी बिवि आपको संभोग करने दे।संभोग एक दिमाग की भावना है।स्पर्श एक एहसास है।यह एहसास हमेशा नही होना चाहिए और वासना भी नही होनी चाइये,वह आपकी बीवी किंव न हो। लेकिन स्पर्श का एहसास जरूर हो।रोज सदाके लिए और कायम। किंव की दोनोके स्वस्थ के लिए शास्त्रीय दृष्टिकोण से उचित है। जैसे स्पर्श होने से शरीर का रक्त स्रव कायम रहता है,उसका नतीजा यह होता है ।आपको शुगर,की बीमारी नही होगी और हार्ट अटैक कभी नही होगा। आप अगर रोज या सप्ताह में तीन बार शरीर सुख पाते हो या देते हो तो आपका बदन का व्यायाम और आयाम ठीक रहेगा ,और आपको बीमारी कभी छुने का नाम नही लेगी।

पूर्वी स्पर्श 
पूर्वी स्पर्श जो इंसान के भूले भिचड़े पल में हो जाता है।कभी भूल कर तो कभो अनजाने में कभी जानबूझकर या कभी जबरदस्ती हो या ,किसीसे अनजाने में  प्यार होने से।
बहुत से लोगोंको बचमन में कभी स्पर्श हो जाता है और स्पर्श का दायरा बढ़ जाता है।
वह स्पर्श पहला होने से उम्रभर तकलीफ देता है। अगर प्यार टुटा हो तो?

जबरदस्ती से किया हुवा स्पर्श एक मजबूर कर देता है ,कोई जानबूझकर स्पर्श करता है।और जबरदस्ती से स्पर्श का अभ्यास मन मे पैदा कर देता है। वह स्पर्श भूलकर भी भुला नही जाता ।उसे लाख कोशिश के  भी दिलो दिमाग से बाहर नही निकल जाता । इसलिए  कि वह एक डरावना स्पर्श होता है।
बचपन मे कोई धुश लगाकर पास आकर स्पर्श करनेकी कोशिश करता है।और वह हमारे इछाओंके शिवाय होता है इसलिए वह पल डरावना और घटिया लगता है।
कभी अपना कभी रिस्तेमे ,या कभी पराया स्पर्श करने की कोशिश करता है,और वह कामयाब भी हो जाता है ।ऐशी स्पर्श की भावना दिल और मन को ख़राब कर देती है
फिर किसके स्पर्श की भावना मन मे नही आती।किसीको छुने की भावना और इच्छा मर जाती है।वह स्पर्श की भावना पुनःह जन्म नही लेती।म इसे भी पहला स्पर्श कहाँ जाय. फिर भी  पूर्वी स्पर्श भूल जाना ही बेहतरीन होता है।
लेकिन पहला स्पर्श भूल जाना बहुत ही कठिन है। फिर भी इंसान भूल जानेकी कोशिश जरूर करता है।लेकिन कभी कभी फिर से अच्छी स्पर्श की बात बन जाती है तो वह भूल जाता है।भूल जानेकी कई मजबूरी भी बन जाती है।


बी आर शिंदे
विस्तार सेवा सहाय्यक ( विशेष शिक्षा )
विस्तार सेवा विभाग ,अ.या.ज.रा.वा.श्र.वि.संस्था ,बांद्रा (प) मुंबई ५०
balajirshinde.blogspot.com

Tuesday, May 15, 2018

भारतीय शिक्षण प्रणाली

भारतीय शिक्षण प्रणाली


बर्याचदा आपनास एखादे आव्हान भेडसावत असते आणि एखादा गहन प्रश्न पडतो उदा : राष्ट्रीय अभ्यासक्रम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) म्हणजे काय? किंवा राष्ट्रीय शिक्षण प्रणाली म्हणजे काय इत्यादी . अशाना आणि अनेक बाबी सततावत असतात पण स्वतःला चिंतेत ठेवल्या सारखे किंवा मूलभूत सेवा सुविधे पासून दूर असल्याबाबत जाणवते . त्यापैकी काही म्हणजे: आपला देश सांस्कृतिक आणि नैसर्गिक वातावरणातील इतका विशाल आणि विविध आहे की शिक्षणाची कोणतीही योजना कधीही सर्वांसाठी योग्य ठरण्याची आशा करू शकत नाही. या संदर्भात मूलभूत तत्त्व सांगितले जात आहे कि "एक आकार सर्वसमावेशक नाही" किंवा, अभ्यासक्रमात शिक्षक आणि विद्यार्थी दोघांनाही बंधन असते; त्याच मुळे त्यांची हितसंबंध दुर्लक्षीत केले जातात , त्यांच्या सर्जनशीलतेला दमवले गेले आणि त्यांची जिज्ञासा नष्ट झाल्याचा भास जाणवतो .त्यासाठी मुलाला मुक्त सोडले पाहिजे ; ते एनसीएफ इतके आदर्श आहेत की त्यांना शिक्षणाच्या व्यावहारिक व्यवसायात काहीच उपयोग होत नाही, आणि त्यामुळे सगळे हे लोक सहसा एक खलाशी घोषित करतात जसे "मला माझे स्वातंत्र्य हवी आहे, कृपया मला नकाशावर मार्ग दाखवू नका." अर्थातच खलाश त्याच्या नकाशाशिवाय आपल्या लांब समुद्राच्या सफरीत हरवल्या जातील, आणि म्हणूनच हे नवीन लोक शिक्षणाच्या अस्थिर समुद्रातील आहेत. या आव्हानास योग्य रीतीने प्रतिसाद देण्यासाठी आम्हाला एनसीएफच्या उपयोग आणि गैरवापराबद्दल थोडक्यात माहिती द्यावयाची आहे .

शिक्षण हा एके काळी शिक्षणात 1 9 76 पूर्वी एक राज्य विषय होता, जेव्हा संविधानातील 42 व्या दुरुस्तीच्या कलमाप्रमाणे समवर्ती सूचीमध्ये त्याचा समावेश करण्यात आला. तांत्रिकदृष्ट्या याचा अर्थ असा आहे की त्या आधी "राष्ट्रीय" अभ्यासक्रम हि अशी चौकट असू शकत नव्हती. एनसीएफ 2005 मध्ये असे म्हटले आहे की "1 9 86 मध्ये पहिल्यांदाच देशाला एक समान राष्ट्रीय धोरण मिळाले." (एनसीएफ 2005, पी 4). 1 9 68 मध्ये संसदेने स्वीकारलेल्या शिक्षणासाठी आमच्याकडे राष्ट्रीय धोरण होते. एनसीएफ 2005 मधील "प्रथम वेळा" या शब्दाचा अर्थ असा लावला कि आपण एनपीई 1 9 68 त असे म्हंटले असले तरी, संसदेने मंजुरी दिल्यानंतर त्या वेळी राज्य शासन शिक्षणाचे राज्य होते, ज्याने राज्य सरकारांना शाळेतील सर्व बाबींवर निर्णय घेण्यास अनुमती दिली. शिक्षण, त्यांच्या कार्यक्षेत्रात अभ्यासक्रम. "(एनसीएफ 2005, पी 3) आणि" केंद्र केवळ धोरणात्मक मुद्द्यांवर राज्यांना मार्गदर्शन प्रदान करू शकेल. "(इबीड)

तसे पाहता राष्ट्रीय शिक्षणाचा इतिहास त्यापेक्षा खूप जुना आहे. गेल्या शतकाच्या सुरुवातीच्या दोन दशकात देशभरात व्यासपीठ होते ज्यामध्ये बर्याच लोकांनी भारतीयांच्या राष्ट्रीय चैतन्यवर औपनिवेशिक शिक्षणाचे दुष्परिणाम नोंदवले आणि राष्ट्रीय शिक्षण व्यवस्थेसह ते बदलणे आवश्यक होते. अरबिंदो हे यानी हे क्षण भारतीय शिक्षण प्रणालीत रुजलेली असावीत ? मुख्यत्वे त्यांच्या सारख्या सांख्य आणि मानवी मनाच्या योग-समजण्यावर आधारित किंवा त्याच वेळी लाला हर दयाळ यांनी प्रखर राष्ट्रवादाशी सहसा औपचारिक शिक्षणावर टीका केली आणि देशासाठी भारतीय संस्कृती व प्रेमावर आधारीत राष्ट्रीय प्रणालीची अधिसूचना झाली असे म्हणणे वावगे होणार नाही .याच दरम्यान फक्त राष्ट्रीय सांस्कृतिक संसाधने यांचा उदय होऊ शकते असा युक्तिवाद केला गेला . शालेय शिक्षणासाठी विद्यापीठांबद्दल केलेल्या त्यांच्या युक्तिवादावर तसेच, त्यांच्या शाळेसाठी प्राचीन भारतमध्ये तपोवनच्या आदर्शापासून प्रेरणा मिळते. लाला लाज पॅट राय यांनी नीटपणे त्यांच्या प्रयत्नांचे विश्लेषण केले जरी असेले तरी काही लोक त्यांना त्यांचे विचार सांप्रदायिक होते म्हणून नाकारतात. नानाच्या शब्दाशिवाय त्यांनी सांगितले की, दयानंद एग्लो वैदिक महाविद्यालय, ... लाहोर येथील आर्य महाविद्यालयातील अलीमग येथील मोहमदान महाविद्यालय, बनारस येथील हिंदू महाविद्यालये सर्वजण त्यांचे संस्थापक, मर्यादित आणि सांप्रदायिक यांच्या "राष्ट्रीय" आचारसंहितांना मूर्त रूप देत होते. ते म्हणाले की यापैकी कोणीही एक असू शकत नाही. राष्ट्रीय शिक्षणाचे मॉडेल . "माझ्या या निवाड्यात खर्याखुऱ्या राष्ट्राला या प्रकारचा एकच मेहनत होती, ती म्हणजे बंगालमधील शिक्षण परिषदेने तयार केलेली ... ... राष्ट्रीय परिषदेची योजना अपर इंडियाच्या चळवळीतील सांप्रदायिक भागातून मुक्त होती. "(पृष्ठ 24, वर पहा ) राष्ट्रीय शिक्षणासाठी ही कदाचित सर्वात महत्त्वाची तत्त्वप्रणाली बनते आणि आपणास तर्क पण देते देतेःपण ती गैर-सांप्रदायिक असणे आवश्यक आहे.

हे थोडक्यात, आणि एकापेक्षा अधिक मार्गांनी मर्यादित आहे , राष्ट्रीय शिक्षणाच्या संकल्पनेच्या इतिहासातील भ्रमण हे काही तत्त्वे संकलित करण्याच्या उद्देशाने आहेत ज्याने राष्ट्रीय शिक्षणाचे आदर्श घडविण्यासाठी एक भूमिका बजावली आणि त्यामुळेच राष्ट्रीय अभ्यासक्रमाची चौकट तयार झाली . अनेक भारतीयांच्या मनामध्ये असे एक तत्त्व सर्वसमावेशक, गैर-सांप्रदायिक स्वभावाचे शिक्षण होते. आणखी एक म्हणजे, राष्ट्रीय चेतना, राष्ट्रीय भावना निर्माण करणारे शिक्षण तिसरा आदर्श राष्ट्रीय संस्कृती, राजकीय आणि आर्थिक जीवनात योगदान आहे; आणि शेवटचे परंतु किमान स्वतंत्र व्यक्तीचा विकास झाला नाही हे हि तेवडेच लक्षात ठेवण्या सारखे आहे .

तसे वास्तविक स्वरूपावर लक्षात घेण्यासारखे असे आहे कि आम्हाला लक्षात घ्यावे की एनपीई १९६८ पासून (कदाचित १९५० कृष्णन कमिशन नंतर) राष्ट्रीय शिक्षण व्यास्थेप्रमाणे एनएसईचे काही प्रमुख पैलू कागदपत्रांमध्ये स्पष्टपणे घेण्यात आली आहेत. त्यांना समजून घेण्याचा प्रयत्न करणे हे फायदेशीर ठरेल.

शिक्षणाचे हेतू आणि उद्दीष्ट :

हे पैलू योग्य प्रकारे समजून घेण्यासाठी आपण हे लक्षात ठेवले पाहिजे: एक, कदाचित उद्दिष्टे आणि उद्दीष्टे या विषयावरील प्रश्न, राष्ट्रीय शैक्षणिक व्यवस्थेच्या भाषणात सर्वांत जुनी चिंता आहे; आणि 20 व्या शतकाच्या सुरुवातीच्या वर्षांमध्ये वर उल्लेख केलेल्या चर्चेत फारच स्पष्टपणे दिसून येते. दोन, आम्हाला "शिक्षणाचे सामाजिक हेतू" आणि "शिक्षणाचे उद्दिष्ट" यांच्यातील संकल्पनात्मक फरक करायला हवा.

या लेखात मी "उद्देशांसाठी" म्हणून फक्त "सामाजिक हेतू" पहाणार आहे. नंतर शिक्षणाचा हेतू त्या शिक्षणाच्या माध्यमाने आम्ही कोणत्या समाजाची निर्मिती करू इच्छित आहोत आणि सामाजिक बदलांसह आपण त्यातून प्रभावी बनवू इच्छित आहोत. उदाहरणार्थ, जेव्हा कोठारी कमिशन शिक्षणास "सामाजिक बदलाचा एक साधन" बनवू इच्छितो किंवा एनपीई 1 9 68 अध्यापनांना "राष्ट्रीय प्रगतीचा प्रचार करण्यामध्ये आपली महत्वाची भूमिका बजावावी, सामान्य नागरिकत्व आणि संस्कृतीची भावना निर्माण करणे आणि राष्ट्रीय एकात्मता बळकट करणे" हे शिक्षण हवे शिक्षण उद्देशांच्या बोलत आहे. ते आम्ही समाजातील कोणत्या प्रकारच्या समाजाशी संबंधित आहोत, आणि समाजाला जाणीव करून देण्याच्या प्रयत्नांमध्ये योगदान देऊ इच्छित आहोत असे आम्ही इच्छितो.

समाजाच्या वैयक्तिक सदस्यांमधील शिक्षणाची उद्दीष्टे थेटपणे शिफारस, क्षमता, मूल्य, कौशल्ये इत्यादी प्रकाराची शिफारस करतात. त्याच डॉक्युमेंटमध्ये (एनपीई 1 9 68) उदाहरण घेतल्यावर, "[शिक्षण] शैक्षणिक प्रणालीने तरुण-पुरुष आणि स्त्रियांचा स्त्रिया आणि राष्ट्रीय सेवा आणि विकासासाठी वचनबद्ध क्षमता निर्माण करणे आवश्यक आहे", असे ते म्हणाले.

येथे उल्लेख केलेले गुण व्यक्तींमध्ये विकसित केले गेले आहेत शिक्षणाचे ध्येय जे शिक्षणाचे सामाजिक उद्दीष्टे पूर्ण करेल. अर्थात, ते जवळून संबंधित आहेत तसेच, त्यांच्याकडे महत्वपूर्ण आच्छादन असते; म्हणूनच चर्चेमध्ये सतत फरक न होता एकमेकांमधे प्रवाह होतो.

शिक्षणावर राष्ट्रवादाच्या वादविषयापासूनच काही हेतूने शिक्षणात सातत्य राखले आहे: राजकीयदृष्ट्या मजबूत, एकत्रीकरण, आर्थिकदृष्ट्या समृद्ध आणि लोकशाही राष्ट्र निर्माण करणे. थोड्या फरकाने हे उद्दीष्टे एनसीएफ 2005 च्या सर्व कागदपत्रांमध्ये दृश्यमान आहेत. जेव्हा आपण स्वातंत्र्य जवळ येतो तेव्हा लोकशाही आणखी महत्वाचे राष्ट्रीय उद्दिष्ट बनते आणि म्हणून शैक्षणिक उद्देश.

शैक्षणिक उद्दिष्ट, व्यक्तींचे गुणधर्म या उद्देशाने घेतले जातात: तर्कशास्त्र असे म्हटले जाते की, "जर आपण अशी समाज आणि राष्ट्रांची इच्छा असेल तर आपल्या नागरिकांना अशा समाजाची निर्मिती आणि निर्मिती करणे आवश्यक आहे का?" परिणामी , काही शतकांपासून सातत्याने टिकून रहाणार्या व्यक्तिच्या काही क्षमता आहेत. स्वतंत्र आणि स्पष्टपणे विचार करण्याची क्षमता यामध्ये; भारतीय संस्कृतीच्या मुळाशी, न्याय व समानतेची बांधिलकी, वृत्तीचे धर्मनिरपेक्ष आणि आर्थिक उत्पादनक्षमतेत योगदान देण्याची क्षमता ही नितांत प्रमुख आहे.

हे असे घडते की एनसीएफच्या गरजांकडे आव्हाने-चुकीच्या दिशेने वाटचाल करणा-या प्रयत्नांचे टीका आणि शिक्षणाचे उद्दिष्ट सर्वाधिक विक्षिप्तपणे होते. बर्याचदा हे जाहीर केले जाते की शिक्षणाचे हेतू ढोबळमानाने निरुपयोगी आहेत आणि शिक्षणाचे मार्गदर्शन करण्यास नपुंसक आहे आणि शिक्षणाच्या हेतू पालक आणि आर्थिक व सामाजिक आकांक्षा बाळगून ठरविले जातात. या लघु लेखात मी या दाव्यांचे तपशीलवार खंडन करू शकत नाही. तथापि, शिक्षणासाठी दोन तत्त्वज्ञांना अन्न म्हणून विचार करणे आवडते, आणि शिक्षणाचे हेतू बेकार म्हणून विचारात घेणार्या अधिकार्यांसाठी, प्राधिकरणाच्या बाबतीत घेतले जाणार नाही.

ड्यूईई या आपल्या प्रसिद्ध पुस्तकात डेमॉक्रसी अॅण्ड एज्युकेशन मध्ये असे म्हटले आहे: "निव्वळ निष्कर्ष असा आहे की हेतूने अभिनय करणे म्हणजे सर्वज्ञानीपणे वागणे एखाद्या कराराच्या टर्मिनसची जाणीव असणे म्हणजे ज्या गोष्टींवर देखरेख करणे, त्यांची निवड करणे आणि ऑब्जेक्ट करणे आणि आपल्या स्वत: च्या क्षमतेचे आदेश देणे यावर आधार असणे. या गोष्टींचा विचार करणे म्हणजे मनाची असावी ... ... जर ती गोष्ट करणे खरोखरच मनापासून आहे आणि अस्पष्ट आकांक्षा नसल्यास - एक योजना असणे आवश्यक आहे ज्यास साधनसंपत्ती आणि अडचणींचा हिशोब लागतो. मन वर्तमान अटी भविष्यातील परिणाम आणि भविष्यात परिस्थिती सादर करण्यासाठी परिणाम पहा क्षमता आहे. आणि हे गुणधर्म फक्त एक उद्देश किंवा उद्देश घेऊन अर्थ काय आहे. एक मनुष्य मूर्ख किंवा अंध किंवा मूर्खपणाचा आहे-ज्याची काही कमतरता आहे त्या कोणत्याही गोष्टीमध्ये त्याला काय माहित आहे, त्याच्या कारणास्तव संभाव्य परिणाम. "[7] (पृ. 120-21 , भर जोडले).

प्रोफेसर क्रिस्टोफर चरई यांनी शिक्षण राज्यांच्या उद्दिष्टांविषयी चर्चा करताना "[डब्ल्यू] शिक्षणाचे प्रमुख उद्दिष्ट हे स्पष्टपणे मान्य केलेले नाही, अशी भीती असते की सार्वजनिक शिक्षण व्यवस्थेच्या कार्यान्वयनासाठी गुप्त उद्दिष्ट सर्वात प्रभावशाली ठरू शकते. हे लक्ष्य प्रणालीच्या आत आणि बाहेर कार्य करणारे सर्वात प्रभावशाली गटांद्वारे निश्चित केले जाईल.

कारण, उद्दिष्टांबाबत थोडे किंवा सार्वजनिक वादविवाद नसतील, कारण काही लोकांचे हित थोडे लक्ष वेधून घेतील आणि त्यांचे नुकसानही होऊ शकते. जर एखाद्या समाजात त्याच्या शिक्षण व्यवस्थेसाठी स्पष्ट आणि मान्य उद्दीष्ट्य नसतील, तर एक धोका उद्भवत नाही की तो फक्त एक सुदृढ व्यवस्था असणार नाही ज्याचा आदर केला जातो आणि कार्य चांगले होते, परंतु त्या गटांमधील व्यापक आणि असमाधानही असेल. ज्याच्या हितांना चांगल्याप्रकारे वागवले जात नाही. "[8] (पृष्ठ 33). असे दिसते की, 'निरर्थक शिक्षण' देखील दुर्लक्षीत आहे.



राष्ट्रीय शिक्षण व्यवस्थेची संरचना

कोठारी आयोगाच्या अहवालाद्वारे देशातील सर्वसामान्य शिक्षण व्यवस्थेबाबत सुचविलेली सूचना प्रथमच करण्यात आली आहे. त्याच्या आधारे एन.ई.सी.ई. 1 9 86 (1 9 86) शिफारस करते की "देशाच्या सर्व भागांमध्ये एकसमान शैक्षणिक संरचनेसाठी" [आय] टी उपयुक्त ठरणार नाही. अंतिम उद्दिष्ट 10 + 2 + 3 नमुना स्वीकारणे, शाळा, महाविद्यालये किंवा दोन्ही स्थानिक अटींनुसार दोन्ही ठिकाणी उच्च माध्यमिक स्तरावर असणे आवश्यक आहे. "[9] (पृष्ठ 44)

या शिफारशीचा स्पष्टपणे उल्लेखनीय स्वरुप असे दिसते की शिक्षणाचा विषय राज्य विषय आहे. एनपीई 86 हे संरचनेबद्दल अपरिहार्य नाही आणि पुढील शिक्षणासाठी 5 + 3 प्रमाणे समान प्राथमिक शिक्षणाचा एकसमान विभाग तयार करू इच्छित आहे आणि संपूर्ण देशाच्या शालेय शिक्षणात +2 ची स्वीकृती (पृष्ठ 5)

सर्व एनसीएफ (10 वर्षाच्या शाळेसाठी पाठ्यक्रमासह, 1 9 75) संपूर्ण देशभर एनएसईचे सामान्य बांधकाम वर जोर देते. पुढे, हे कागदपत्र सहसा एनसीएफचे एक महत्त्वाचे ध्येय म्हणून विशेषतः राज्य करतात.

एनएसई आणि भाषा धोरण :

एनएसईचा आणखी एक महत्वाचा पैलू म्हणजे भाषेच्या विकासावर भर आहे. NPE 68 Indang भाषांच्या विकासाचे महत्त्व मान्य करते आणि निष्कर्षाप्रत येते की या लोकांच्या "सृजनशील शक्तींच्या विरूद्ध सोडले जाणार नाही, शिक्षणाचे दर्जा सुधारणार नाहीत, ज्ञान लोकांपर्यंत पोहोचणार नाही आणि बुद्धीवादांमधील गल्ली पुढे अधिक विस्तारत न राहिल्यास लोक तेच राहतील. "(पृष्ठ 3 9) सुचवलेली तीन भाषा सूत्र हे प्रादेशिक भाषेच्या विकासाचे उद्दिष्ट, दुवा भाषा विकसित करणे आणि इंग्रजीचे ज्ञान यांच्यातील संतुलन शोधण्याचे एक मार्ग म्हणून पाहिले जाते.

एन.पी.ई. 68 नंतर एनईसी 68 नंतर ही मान्यताप्राप्त भाषा धोरण आहे आणि एनसीसीने पुनरुच्चार केले आहे, जरी शासकीय व शाळांना केवळ त्याच्या आत्म्याशिवाय नसलेल्या पत्रात किंवा फक्त तेच पाळत असला तरी..



सामान्य योजना अभ्यास :

राष्ट्रीय शिक्षण प्रणालीमध्ये शालेय स्तरावर अभ्यासाची सर्वसामान्य योजना आहे. प्राथमिक आणि माध्यमिक शिक्षणासाठी राष्ट्रीय अभ्यासक्रम - एक आराखडा 1988 (लहान मुलांसाठी 1 9 88), पूर्व प्राथमिक ते माध्यमिक शिक्षणातून अभ्यास करण्याची एक सामान्य योजना मांडली आहे. प्राथमिक स्तरावर ते एक भाषा (मातृभाषा / प्रादेशिक भाषा), गणित, पर्यावरण अभ्यास, कार्य अनुभव, कला शिक्षण प्रस्ताववत करते. आणि आरोग्य आणि शारीरिक शिक्षण. उच्च प्राथमिक आणि माध्यमिक स्तरावर मुलांनी तीन भाषा अभ्यास करावा लागतो आणि पर्यावरणीय अभ्यासांचा विज्ञान आणि सामाजिक अभ्यासांशी पुनर्स्थित केला जातो; बाकीचे प्राथमिक स्तरासारखेच आहे. ही योजना एनसीएफ 2000 व एनसीएफ 2005 मध्ये तंतोतंत जोडलेली नसली तरी ती अजूनही देशभरात प्रचलित आहे. अभ्यासाची सर्वसाधारण योजना मात्र याचा अर्थ असा नाही की प्रत्येक अभ्यासक्रम विषयात अभ्यासक्रम हा संपूर्ण देशभरातच असणे आवश्यक आहे. अभ्यासक्रमास स्थानिक संदर्भामध्ये संरेखित करण्यासाठी लवचिकतेचा खूप विचार केला जातो. तथापि, सामान्य मानकांच्या हितामध्ये विम्याच्या संरचनांमध्ये वाजवी समानता असणे आवश्यक आहे. अध्ययनाची सामान्य योजना संपूर्ण देशाच्या उपलब्धतेचे सामान्य मानके तयार करण्याची शक्यता देते.

सामान्य कोर अभ्यासक्रम :

एनईपीई 1 9 86 असे म्हटलेले आहे की "राष्ट्रीय शैक्षणिक व्यवस्था राष्ट्रीय अभ्यासक्रम संरचनेवर आधारित असेल जिच्यामध्ये लवचिक असणाऱ्या इतर घटकांसह एक सामान्य कोर असणे आवश्यक आहे. भारतातील स्वातंत्र्य चळवळीचा इतिहास, राष्ट्रीय ओळख पटवून देण्यासाठी आवश्यक असलेली घटनात्मक बंधने आणि अन्य सामग्रीचा समावेश असेल.

हे घटक विषयक्षेत्रांमध्ये कापून टाकतील आणि भारतीय सामान्य सांस्कृतिक वारसा, समानतावाद, लोकशाही आणि धर्मनिरपेक्षता, लिंगांची समानता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक अडथळे काढून टाकणे, लहान कुटुंबाचे नियम पाळणे आणि शिक्षणासारख्या मूल्यांना प्रोत्साहन देण्यासाठी डिझाइन केले जाईल. वैज्ञानिक स्वानुभवाच्या. सर्व प्रकारच्या शैक्षणिक कार्यक्रम धर्मनिरपेक्ष मूल्यांनुसार कठोर परिश्रम करतील. "(पृष्ठ 5)

यातून स्पष्ट होते की सर्व भारतीय मुलांना काय समजून घेण्यात आले आहे तसेच पाठ्यक्रमाच्या संदर्भसूचकतेसाठी मोठी स्वातंत्र्यही दिले आहे.

आतापर्यंतच्या चर्चेचा सारांश काढण्यासाठी:

आधुनिक भारतातील निर्मात्यांनी हे निष्कर्षापर्यंत पोहचले की सर्वांसाठी समान अधिकार असलेले लोकशाही राष्ट्र असेल. हे निष्कर्ष स्वातंत्र्य चळवळीतील एक वेदनादायक प्रक्रियेतून उदयास आले.

याव्यतिरिक्त, देशाच्या आर्थिक विकासासाठी तातडीने आवश्यक (अद्यापही) सर्वांसाठी सन्माननीय जीवन आहे.

म्हणून, जीवनाच्या विविध क्षेत्रांत लोकांच्या क्षमतेचा विकास करणे आणि लोकशाही मूल्यांसह राष्ट्रीय चैतन्य निर्माण करणे आवश्यक झाले. आवश्यक कौशल्ये, मूल्ये, ज्ञान आणि कौशल्ये विकसित करण्यासाठी केवळ शिक्षण उपलब्ध आहे.

आम्ही एका राष्ट्राच्या बोलत आहोत ज्यामध्ये लोकसंख्येचा एक भाग पासून दुसर्या ठिकाणाहून दुसऱ्याची हमी दिली जाते, संधीची समानता हमी दिली जाते, शिक्षणाच्या व्यवस्थेमध्ये एक समानता असली पाहिजे. त्यामुळे राष्ट्रीय शिक्षण प्रणाली.



एनएसईची वैशिष्ठ्ये आज आपण समजून घेतो त्यात सामान्य उद्देश आणि शिक्षणाचे उद्दिष्ट, शालेय शिक्षणाची संरचना, मुख्य भाग आणि अध्ययनाची योजना यांचा समावेश आहे.

हे सर्व समान शैक्षणिक संधी सुनिश्चित करणे शक्य नाही.

राष्ट्रीय अभ्यासक्रम फ्रेमवर्क :

एक सामान्य शिक्षण प्रणालीची गरज लोकशाही संविधान आणि राजनीती असण्याचे कारण आहे. शिक्षणाच्या राष्ट्रीय धोरणामध्ये ही गरज स्पष्ट आणि न्याय्य आहे. एनसीएफ हा इन्स्ट्रुमेण्ट आहे ज्याद्वारे एनएसईचे आइडर्स वास्तविक बनू शकतात. त्यामुळे राष्ट्रीय अभ्यासक्रम फ्रेमवर्क, भारताच्या संविधानातून आणि एनपीईने आपल्या औचित्य साधून शिक्षणाची एक योजना बनते. पण त्यातील मूलभूत तत्त्वांनुसार वर्गामध्ये वास्तविक शिकवण कशा प्रकारे मार्गदर्शित करू शकेल त्या तत्त्वांचा एक आराखडा तयार करणे हे त्याचे काम आहे . म्हणून, अभ्यासक्रम, पाठ्यपुस्तक, शिक्षण पद्धती आणि मूल्यांकनविषयक विकासासाठी सर्व मार्गदर्शक तत्त्वे एनसीएफ दस्तऐवजात एक जागा शोधणे आवश्यक आहे, कारण ही राष्ट्रीय शैक्षणिक आदर्श आणि त्या आदर्शांच्या लक्षात येण्यासाठी वर्गामध्ये क्रिया आहे. दुसऱ्या शब्दांत सांगायचे तर, हे राष्ट्रीय मार्गाने नकाशा आहे जेथे आपण राष्ट्रीय शैक्षणिक आदर्शांकडे आहोत. स्पष्ट दिशानिर्देश तसेच तत्परतेसाठी पक्की खोली देणारे तत्त्वे तयार करणे हे एक कठीण काम आहे, परंतु एनएसई ने अभ्यास केला आहे. देशातील सामाजिक-राजकीय तत्त्वज्ञान, अपेक्षित समाज आणि त्यातील मानव, शैक्षणिक तत्त्वे आणि वास्तविक संदर्भ आणि राष्ट्राची वर्तमान गरज याबद्दलची गंभीर समज सर्व तत्त्वांच्या अशा आराखड्यात योगदान देणे आवश्यक आहे.

एनसीएफ, म्हणूनच शाळेची व्यवस्था आहे कारण समुद्रमार्गावरील मार्ग नकाशा हे आहे. नक्षलवादाचा प्रवास न करता एक समुद्र प्रवाश आपला मार्ग गमावतील आणि शालेय प्रणाली एनसीएफ शिवाय राष्ट्रीय आदर्शांच्या यशापर्यंत अडथळा आणत किंवा अडथळा निर्माण करीत आहे की नाही हे शालेय प्रणाली कधीच समजणार नाही.

संकलन :बी आर शिंदे
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BRS©️१३-०१-२०१७ (संदर्भ : British Council of India 2014, education in india : Wikipedia .)

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