Wednesday, February 22, 2017

मुंग फल्ली की चोरी

मुंग फल्ली की चोरी

येह सन १९७२ की बात है जब मै सात साल का हुवा करता था।  मानवीय ज्ञान के मुताबिक बचोन्मे बचपन में देखे हुये  और सुने हुये किस्से जैसे कथाये और कावितये भूल  नही पाते । दादा दादी के किस्से ,और नाना नाणी के किस्से। और उन्होंने सुनाई हुयी कथाएं।

लेकीन मै जो यहा बताने जा रहा हुं। येह कोई कथा या कहानि का किस्सा है  और न कथा का भाग है। येह मेरे जन्म दाता ,अन्नदाता पिताजीके साथ बीती हुई कहाणी है।

१९७२ में पुरे मराठवाडा ,(महाराष्ट्र ) विभाग में भारी वर्षा के कारण अकाल पडा हुवा था। कही का रखा नही था। महामाररी  की आफत आ पडी  थी। पुरे इलाखे में खाणे के लिये अनाज बचा नही था। खेती बह गयी थी। घर नदी नाले पानीसे बह गये थे। फिर भारत सरकार ने अकाल घोषित किया था ,विश्व के बहुत सरे देश ने मदत के श्रोत दिए थे उसमे अमेरिका पहिली लाइन पर था।

अमेरिका से धान और खाने की चीजे आती  थी । इसमे सुगडी नाम का आटे जैसा पावडर था जो राशेन के दुकान में ही मिलता ,उसे गरम पाणी में उबाल कर खा लिया करते थे। वह शीरे जैसा बन जाता।

इसके साथ -साथ पिले रंग की “मिलो” नामक  ज्वारी और “काटीजवा” जो गेन्हू के जैसा दिखाने वाला धान था। ज्वारी पिसणे के बाद  पिले रंग का आटा निकाल आता था। इसलिये इसे पिली ज्वारी ही किया करते थे।

काटीजवा को कुटकर उपरवाला कवर निकालकर उसे भी गेन्हू जैसे दिखने वाले धान को पिसा  करते थे। और उसी रोटी से गुजारा होता था।

कहते है  की उस जमाने में जो धान अमेरिका से भारत में  आता था , पावडर हो ,और कोई  धान  वहाँ  के सुवर का अनाज था। वो अनाज उस दिन में खा लिया करते और गुजरा कर लेते। भारत वाशी।

वह दिन बुरे और बड़े कमाल के थे ? आज लोग पानी  बैगैर मर रहे है और उस समय लोग पाणी के चलते मर रहे थे।  नदी नाले में पाणी जो बहता था वह घर तक नदी की मछलिया  ले आता। इतना पानी का बहाव होता था। खली मछलिया खाकर  भी दिन निकला किया  करते थे।

मेरे मातंग मोहले में एक मरीआई का छोटासा मंदिर था। मंदिर क्या एक छोटासा बैठेने लायक  जगह था। उस मंदिर में रात में सभी मोहले के लोग जमा हो जाते और इस अकाल के बारे में मरीआई को दान मांगते ? की हे माँ कुछ कल के खाने का इंतजार कर ? बाते करते करते सभी का  एक मत हो जाता की आज कहा चोरी करने चले जाना है।

जाने का ठिकान तय हो गया की आज कहा जाना है। और वह ठिकान था माली पाटिल का खेत। माली पाटिल का खेत पुरे गाँव में अलग -अलग जगह करीबन सौ एकड़ था।  वह चार हिस्सो में बाटा हुवा था।

उनके तालाबा के पास जो  खेत था , थोडा धरातल से  ऊँचा और सुपिक  होने के वजह से वहा थोड़ी मुंग फल्ली के खेती में उपज आयी थी। वहा जाने का पक्का हुवा।

मांग जमात जो ठहरी रामोशी। रामोसी के पूर्वज राजा -महा राजओंके के दरबार में सिपाही का कम किया करते थे। बड़े ताकत वर और कडवे थे। यह लोग बड़े हिम्मत वाले और शुर वीर भी थे। इनके  पास कोई उत्पन्न का साधन नहीं था। न गांव घर था और खेतो में खेती थी। रोजी रोटी के लिए जो कम मिला वही किया करते थे।  इन्हीके शोक निराले थे ,ये न आदिवाशी थे ,न बंजारन ,और न सुधरे हुए थे।

लेकिन  अब वह दिन नहीं थे ,पेट के लिए रात में कभी   चोरी किया करते। और दिन में बजा बजाना ,मजूरी का काम करना ,जो भी खेती में काम मिला वही किया करते। और कोई कलाकार भी थे। जैसे बजा बजाना और कला कुसर का काम करना। इनका काम पेट तक सिमित था। इन्हें कल के परवाह न थे।

कभी रात में खेतोंसे आनाज चुराना ,बैल -गाय के लिया कडबा चुराना ,और समय आने पर किसीकी मुर्गी या बकरी चुराना ,और मौका मिले तो गाय या भैस का बछडा चुरा कर घर ले  आना। यह बड़े हिम्मत और हिकमत का कम था पर वह किया करते थे। किंव की पापी पेट का सवाल था।  घर में सात आठ बाचे बीबी ? इन सबका कैसे गुजरा होता ? तो कोई काम  नहीं होने से इनके पास चोरी एक मात्र साधन बचा था ?


रघुनाथ बढे होशियार और ताकतवर भी था।  वह इस घटना का हिस्सा है।  उनके पिताजी बड़े कारगर थे ,घर बनाने  वाले उस इलाखे के एक मात्र मिस्त्री थे ,उनका नाम था ग्यानोबा। ग्यनोबा  बड़े होने के कारण उनकी बात हर एक मान  लिया करते थे ,उन्हें वाद्य में बहुत ही रूचि थी वह ट्रम्पेट से अछे -अछे गाने बजाय करते। उनका उस ज़माने में एक ब्रास बैंड भी हुवा करता  था।

रघुनाथ भी उनकी रह पे थे लेकिन अलग किस्म  के थे ,उन्होंने नांदेड में अपने गुरु से मिस्त्री काम की कला हासिल की थी और उनका नाम  मुजावर

रघुनाथ शादी के पहले पूर्वोतर राज्य के शिलोंग में मिलिट्री में फौजी के तौर पर भर्ती हुये थे ,मेरी दादी को किसीने कहा की ,”आर्मी में गया हुवा इन्सान कभी वापस नहीं आता ? ” उन्हें यह चिंता का विषय बना  ,उन्होंने तलाठी ,गांव के मुखिया और ग्राम सेवक और सरपंच जरिये मिल्ट्री में कार्यवाई कर के  ,कुछ लिखा पढ़ी करके घर बुला लिया और फिर उन्हें कभी वापस जाने नहीं दिया। उन्होंने बहुत कोशिश करने पर नकाम होगये ? और उनकी शादी एक अनपढ़ ,नीला के साथ होगयी।

उस दिन कुल मिलकर दस  लोग चोरी करने निकले थे उनका इरादा पक्का था ,चोरी करकर कल के लिए कुछ ले आयेंगे तब चूल्हा जलेगा ?

तुकाराम ,नामदेव ,गोविन्द ,भिवाजी .संभाजी ,हरिबा ,गोपीनाथ ,दामोदर , तुल्शिरम,अर्जुन ,महादुअप्पा ,और रघुनाथ। इस खेमे में सबसे उम्र वाले तुकाराम थे और सबसे छोटे रघुनाथ था।

रात होगई अँधेरा छा गया ,आपने आपने  सामान की तैयारी शुरू  हो गयी ,जो घर में हतियार था वह कमर पर चढ़ा था ,कमर पे धोती जोरोंसे बंधी हुयी थी। और सर पर कला कफ़न।

पूरा खेमा अपनी रामोशी भाषा में बाते करते हुये ,माली पाटिल के खेत के और मोर्चा बोल पढ़ा ,करीबन रात के दो बज रहे होंगे।बाल बच्चे औरते नींद की खराटे ले रहे थे और खेमे के लोगोंका दिन निकल पढ़ा था।

सबने अपने आपने ताकत के हिसाब से पूरा मुंग फल्ली का खेत खाली  किया था ,जैसे कोई पंछीयोंकी   टोळ धाड   होती है ,देखते देखते  सब की बोरिया भर गयी थी।  कोई खली हाथ न था। सब के बोरी में घास जैसी मुंग फल्ली भरी हुई खचा खच भरी थी।

एक एक करके चीटी  के चाल  से अपना घर का रास्ता पकडे हए थे। यह सोचकर की ,चलो कल घर में कुछ खाने को मिलेगा ? जैसे ही गाँव पहुँच गए ,सब बिखर गए। एक एक करके अपने घर में आने लगे। बिन आवाज दिए आपने आपने घर आये।

मै और मेरी छोटी बहन आशा के साथ एक छोटेसे घर में सोये हुये थे ,मेरी माँ सोयी नहीं थी ,दादा के आने के इंतजार में लेटी हुयी थी। समय समय पे घर में उठकर बैठा किया करती थी। उसे दादा की चिंता थी की वह कब घर आएंगे ?

दरवाजे की कड़ी अन्दर हात डालकर दादा जब आंदर  आये तब माँ ने कहा की ,आगये क्या ? हां  आगया  बहुत देर लगाई आने में ?
दादा ने कहा बहुत कोशिश करनेके के बाद यह मिला देखो ? मुंग फल्ली का दाना ?
आपनी बोरी उतार ली ,वह थककर बैठ गए और माँ को पानी के लिए इशार किया ,और पानी पिते -पीते कहा की देखो निकालो इसमें कितनी मुंग फल्ली है। मै भी उस बोरी के पास गया ,और देखा तो मुझे वह बोरा हिला नहीं ,किंव की वहा खचा खच भरा हुवा था।

मै और मेरी माँ ने बोरे में भरे हुये सब वेल बहार निकलना शुरू किया और देखा तो ,मामूली से दाने दिखाई दे रहे थे
एक एक वेल को कम से कम एक मुंग फल्ली का दाना था ? माँ में निचले सौर में कुछ कहते हुये कहा की आपकी तो मेहनत बेकार चली गयी? इतना बोरा  ढोकर  ले आये हो कमसे कम इसे दाने लगे है क्या देखना था ?
दादा कहने लगे ,वहा क्या परख ने को समय था क्या ? कुछ मिला नहीं तो इसे ले आये है हम? और क्या करता ?

एक गोनी में कम से कम तीन चार  किलो मुंग फल्ली मिली होगी ? दादा की मेहनत फस गयी थी ? हम सभी लोग सो गए ,जब सुबह हुयी तो ,मेरी दादी आयी और उसने सभी  मुंग फल्ली के  वेल , भैस  को चारे के रूप में ले गयी ,हात आये कुल मिलकर चार किलो मुंग फल्ली के दाने ?

सुबह माँ ने कुछ मुंग फल्ली के दाने तवे पे भूनकर सबको खिलाया ,मैं स्कूल चला गया ,और दादा मजूरी का काम देखने बहार चले गए ,और माँ भी किसी के खेत में मजूरी का काम करने चली गयी ? दादा लौटकर घर आये ,कुछ काम न मिला ?

फिर आज रात में जाने के तैयारी  में , दादा मरिआई के मंदिर  चले गए, की कहा जाना है ?

23/02/2017 brs

Monday, February 13, 2017

एक हजार के नोट का बंडल

एक हजार के नोट का बंडल

मैं  उस समय कक्षा १२ वी में पढ़ रहा था। मुझे लातूर आते हुए दो साल हुए थे ,और मैं बारहवीं कक्षा  बसवेश्वर में दाखिल हुवा  था ,यह कॉलेज के दिन की  बात है।

लातूर एक ऐसा  शहर है वहां हर मजहब  के लोग रहते है ,यह एक व्यापार की पेठ  है,गुजराती ,मारवाड़ी और पंजाबी  व्यापार के चलते यहाँ बसे हुए है।

गंजगोलाई  चौक एक संसार का अजूबा है ,यहाँ से  शहर के किसीभी जगह जा सकते है और वापस येही  आते हो ,अगर आप कही भूल गए हो। इस केंद्र स्थान से साथ रस्ते बहार की  और निकलते है। गंजगोलाई शहर के केंद्र स्थान में है। यहाँ गोल चौक  के अंदर एक जगदम्बा  देवी माता  का मंदिर है। कहते है  सर फैयाजुदीन ने इसका प्लान  बनाया था।

मैं जिस भाड़े के घर में रहता था वह एक छोटासा कमर था , पढाई के लिए जगह नहीं थी। दस बाय दस का कमरा था उसीमे हम दोनों रहते  ,मैं और पिताजी ,जिन्हें हम परिवार के सभी सदस्य  दादा कहते थे।

एक दिन हुवा यूँ की  रोज की तरह मैंने आपन रात का खाना आठ बजे खा लिया और अपनी साइकिल लेके कॉलेज के लाइब्रेरी के और चल पड़ा ,रोज रात में ,मैं दोस्तोंके साथ पढाई करने चले जाता। करीबन चार किलोमीटर की मेरे घर से दुरी होगी।

आज मैं ग्यारह बजे तक लाइब्रेरी में था ,करीबन बंद होनेका समय था। लाइब्रेरी बंद होने के बाद सब सुडेन्ट लोग इस टी स्टैंड पर मधुसूदन होटल में  चाय पिने जाते। आज मेरा मन चाय पिनेका नहीं था ,मैंने मलाई का दूध पि लिया।

हम दोनों दोस्त थे , आज उसका नाम पता नहीं। इस वक्त वह मेरे साइकिल पर पीछे बैठा था। रोज मैं अकेला घर चले जाता ,लेकिन आज उसकी सायकिल ख़राब थी वह घर से आते समय चलकर आया था।

उसे आपने  घर तक छोड़ने का वादा किया ,तब उसने रिक्शा नहीं की वह मेरे साथ आ पड़ा। मेरे जैसा वह भी गरीब घर से था। हम दोनों सायकिल पर सवार होगये।

हुवा यूँ की कुछ कदम आगे गंजगोलाई के और बढ़ते ही ,आगे से एक रिक्शा हमें जोरोसे हूल देकर निकल गयी। अंदर एक आदमी बैठा हुवा था ,न उसने हमें देखा और न हमने उसे देखा इतनी तेज रफ़्तार से खाली और खुल्ली सड़क पर रिक्शा वाला रिक्शा दौड़ा  लिया।

मुझे इस अँधेरी रात और  सुनसान आवाज में रिक्शा से कुछ गिरने की आवाज आगयी ,मैंने सायकिल रोक दी। वैसे ही मेरा दोस्त भी उत्तर पढ़ा।

एक हजार के रुपए का  बण्डल गिर पड़ा था। मैंने जाके उठा लिया।  हम दोनों हैरान हो गए ,अब करे क्या ? पोलिस में जाते तो वह उलटे सवाल हमें पूछते ,और पैसे भी वह रख लेते और कॉलेज में नाम ख़राब होने का डर ?सोचा चलो घर ले जाते।

रात के साढ़े  ग्यारह बज गए थे  पिताजी सोये थे घर में आते ही पिताजीको मैंने सारी  हकीकत बताई ,पिताजी माननेको तैयार ही नहीं ,जब मैंने उन्हें  विस्तार से बताया तब मान गए ,और उन्होंने वही नोट का बण्डल  हात में लीया । जैसे ही उन्होंने छुवा उसे माथे पे लगाया  और सीधे भगवान संकर जी के फोटो के पीछे छुपाकर रख दिए.?

उन्हें डर  था की कोई घर तक आयेगा  ? पोलिस की तलाशी भी हो सकती है ? लेकिन उन्हें मालूम ये  नहीं था की ,कोई धनिक मारवाड़ी ,बनिया ,या पंजाबी रात के नसे में रिक्शा में बैठे -बैठे  पैसोंके बण्डल गिनते हुए घर जा रहा था ?

मेरे दादा बड़े भोले थे ,तीन महीने तक उन्होंने वह नोट का  बण्डल वही रखा था।  किंव की उनके जिंदगी में पहली बार उन्होंने ऐसा पैसा देखा था और मैंने भी। आज मेरे दादा नहीं है। उनकी यादें मेरे साथ है ,सदा के लिए।

जब वह गांव गए तब नोट का बण्डल छुपाकर अपने अंदरवाले कमीज में डालकर ले गए थे ,माँ कहती थी ,उन्होंने घर गली में सबको वह बण्डल दिखाया था। वह पैसा काम आया ,जब दादा और दादाजी ने  हमारा दूसरा घर बनाया था।

बी आर शिंदे ,नेरुल- ७०६

१४ /०२/२०१७

Saturday, January 28, 2017

जयललिता जयराम

06 डिसेंबर २०१६

 वरून शांत आणि मायाळू दिसणारा चेहरा, अंतर्यामी करारी बाणा आणि वेळ आल्यास विरोधकांना लोळवण्याची वृत्ती.बुद्धी चातुर्याच्या जोरावर विरोधकाला आपली जागा दाखवणाऱ्या स्त्री ललना म्हणजेच  जयललिता जयराम , तामिळींच्या ‘अम्मां’ची ही ओळख पुरी आहे . सिनेमातून राजकारणात अशी परंपरा तामिळी-तेलुगु राजकारणात आहे. आणि हा त्यांचा खरा खुरा अखाडा आहे ,प्रथम सिनेमात प्रसिद्धी मिळाल्यावर नंतर राजकारणात प्रवेश करतात ,त्याच वाटेवर जयललिता यांचा पण  राजकारणात भक्कम  प्रवास कसा झाला आणि जयललिता त्याच परंपरेतल्या नेमका कसा आहे याचा घेतलेला आढावा

      त्यांच्या चित्रपटाचा आढावा घेतला तर , चिन्नडा गोम्बे, वेन्निरा अडाई आणि इज्जत ही आहेत अनुक्रमे कानडी, तामिळ आणि हिंदी सिनेमांची नावं.त्यांचा हा एकूण एकशे चाळीस चित्रपटाचा प्रवास , पण हे सिनेमे साधुसुधे नाहीत  किमान तामिळींसाठी तर नाहीतच कारण त्यांच्या अम्मा अर्थात जयललितांच्या या डेब्यु फिल्म आहेत.नखशीकांत भारतीय संस्कृतीचा एक अस्खलित नमुना आहे .त्यांच्या सिनेमाची रंजक काही वेगळीच आहे.

तामिळनाडूच्या राजकारणात गेली 3 दशकं आपला दबदबा कायम राखणारी ही करारी महिला वडिलांच्या निधनानंतर सन १९८४ साली त्या प्रथम निवडून आल्या .एकंदरीत मागे इतिहाच्या खुणा पहिल्या तर , तामिळी फिल्म इंडस्ट्रीत पहिल्यांदा स्कर्ट घालून खळबळ उडवून देणार्‍या जयललितांनी त्यानंतर अनेक हिट सिनेमे देऊन १९८०  मध्ये चित्रपटसन्यास घेतला होता . राजकारणात प्रवेश केला.तो कायमचा,शेवटच्या क्षणापार्येंत त्या राजकारणात सक्रीय होत्या .

एमजीआर अर्थात एमजी रामचंद्रन यांच्या ऑल इंडिया अण्णा द्रविड मुन्नेत्र कळघममधून त्या राज्यसभेवर निवडून  गेल्या. आणि १९८८  साली त्या प्रथम  बनल्या लोकसभेच्या खासदार झाल्या .
त्याचवेळी त्यांची एमजीआर यांच्याशी जवळीक वाढली आणि लवकरच एमजीआर यांच्याशी त्यांनी दुसरी पत्नी म्हणून घरोबाही केला. अर्थातच करुणानिधींच्या द्रमुकशी जोरदार संघर्ष करण्याकरता एमजीआरनी जयललितांचा वापर केला आणि एमजीआर यांच्या निधनानंतर द्रमुक विरोध हाच अम्मांच्या राजकारणाचा कळीचा मुद्दा बनला.
1989 च्या विधानसभा निवडणुकांत जयललितांना चांगलं यश मिळालं, पण सत्ता मिळू शकली नाही. विरोधी पक्षनेत्या होणार्‍या त्या पहिल्याच महिला होत्या.विरोधी पक्ष म्हणून असताना त्याने सताधारी पक्ष्याला बरेच धारेवर धरले होते  काँग्रेसन पाठिंबा काढल्याने त्यावेळी द्रमुक सरकार कोसळले. आणि 91 च्या निवडणुकांत मग जयललितांनी काँग्रेसबरोबर आघाडी केली.कारण त्या राजकारणात एक अस्टपैलू व्यक्तिमत्वाच्या होत्या .1991 च्या वर्ष्यात
दुसर्‍याच दिवशी राजीव गांधींची हत्या झाली. अर्थात सहानूभूतीच्या लाटेचा फायदा अम्मांना मिळाला आणि त्या निवडून आलेल्या तामिळनाडूच्या पहिल्या महिला मुख्यमंत्री बनल्या. मात्र 5 वर्षांच्या या कारकीर्दीत त्यांच्यावर भ्रष्टाचाराचे आरोप झाले आणि 96 ला त्यांच्या हातातून सत्ता गमवावी लागली . पण 2001 साली पुन्हा धडाक्यात त्यांनी करुणानिधींकडून सत्ता हस्तगत गेली.विरोधी पक्ष्याला कधीच थारा न देता ,दोघात सतत चा संघर्ष वाढतच राहिला .
द्रमुक आणि अण्णा द्रमुकचा संघर्ष वाढतच होता. एकमेकांवरचे भ्रष्टाचाराचे आरोप, सत्ता संघर्ष यातून पुन्हा द्रमुकचे करुणानिधी 2006 मध्ये तामिळनाडूचे मुख्यमंत्री बनले.
सत्ता संघर्षाच्या या 15 वर्षांच्या काळात मिळकतीपेक्षाही अधिक संपत्ती, दत्तक मुलाचं शाही लग्न यामुळे अम्मांवर टीका आणि आरोप झाले. त्यातच कोर्ट निर्णयाचा फायदा घेत करुणानिधींनी जयललितांना एका महिन्यासाठी जेलमध्येही पाठवलं होतं.
गेल्या पाच वर्षात मात्र बाजी पलटू लागल्याचीच चिन्ह दिसू लागली. द्रमुक अंतर्गतच अनेक वाद, घराणेशाहीचं राजकारण आणि गाजत असलेला 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाळा. द्रमुकच्या सत्तेला घरघर लागण्याचीच ही नांदी होती.
त्याचाच वापर करत अम्मांनी प्रचाराची राळ उठवून दिली. आणि वैतागलेल्या तामिळी जनतेनं मग द्रमुकला खाली खेचत, जयललितांना पुन्हा सत्तेवर बसवलं.
२०१६ च्या निवडणुकीत तर मतदारांना पंखे, सायकली, टीव्ही असे मोफत बक्षीसांचं आमिष देऊन अम्मांनी प्रचाराच धुराळ उडवलं. विशेष म्हणजे तामिळनाडूमध्ये अालटूनपालटून सत्तांतर होणे हे नेहमीचे पण तामिळ जनतेनं अम्माला साथ दिली. सलग दुसऱ्यांदा आणि आतापर्यंत पाचव्यांदा मुख्यमंत्री होण्याच बहुमान अम्मांनी मिळवला. एका अभिनेत्री ते मुख्यमंत्रिपदापर्यंतच अम्माचा प्रवास थक्क करणारा असाच आहे.म्हणूनच त्या अम्मा होऊ शकल्या.

जेल्लिकट्ट एक जानलेवा खेल



जेल्लिकट्ट एक जानलेवा खेल
जेलिकट्टु एक जानलेवा खेल है जो तमिलनाडु में बैल (सांड ) के साथ खेला जाता है ? इसके शुरुवाती दौर में प्रैक्टिस के दौर में सन ४०० -१०० बी सी में शुरुवात हुई थी। पुराने ज़माने में एक यह मामूली और सामान्य खेल था। जो मुल्लाई के इलाके में रहते थे और अय्यर लोग ज्यादा तर यह लोग खेला किया करते थे।

उसके बाद उसे एक मूर्त स्वरूप आया और यह खेल के तौर तरीके पेश किय जाने लगे। और इसे एक शौर्य लोगोंका खेल के रूप में उभर आया। इन्दुकुश के पहाड़ी इलाकेमें इसका ज्यादातर प्रभाव दिखई देता है ,सबसे ज्यादा तमिलनाडु में विकास होता गया।

इस खेल में एक बैल होता है उसे सांड भी कहते है ,बहुत ही ताकतवर होता है ,उसे काबू में करने के लिए एक आदमी ही इसके साथ खेल खेलता है ,और ढेर सारे लोग इसे खेल के तौर पर देखने आते है।

यह खेल इतना खतरनाक है की ,इसमें बैल के साथ खेलनेवाली की जान तक जा सकती है। कई खिलाडी जख्मी भी हो जाते है और कायम विकलांगता भी आती है।

ऐसे देखा जाय तो यह एक पशु के साथ खिलवार है। उसे सजाया जाता है उसके सिंग को नोकदार बनकर उसे हानि पहुंचने तक मनमानी की जाती है। इसके दम को खीचने से कई सांड की दुम भी टूट जाती है।

यह पशु के साथ किया हुवा अन्याय है ,वह यह नहीं जनता की उसे क्या करना है। वह अपने बचाव के लिए खिलाड़ी को मारने के कोशिस करता है ,कभी उसे मरता है तो कभी लोगोंके भीड़ में घुस जाता है। जब लोगोंके भीड़ में घुस जाता है तो दो चार को जबर जख्मी करके छोड़ देता है।

जब खिलाडी के साथ आगे पीछे भाग लेता है तो ,कभी आपने नुकीले शिंग से उछलकर फेक देता है या फिर उसके अंग में शिंग घुस कर भाग जाता है। खिलाडी को उसको काबू में करें के लिए सांड को बहुत बुरी तरह से तकलीफ दी ज्याति है। कभी उसके सिंग को जोरोंसे खीच जाता है ,कभी उसकी दम जोर जोर से खिंची जाती है और उसे काबू में करने की कोशिश की जाती है। कभी पिंड को मरोड़ा जाता है। इसी सभी तरीकोंसे घायल सांड क्षतिग्रस्त हो जाता है और काबू में आता है।

हमारे भारत में सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जो लोगोंको मनोरंजन के साथ साथ ग्यान भी बटोरनेका काम करता है। तो जैल्लीकट्टू के ऊपर करीबन पांच ऐसे फिल्म दिए है जो इस खेल को बढ़ावा देती है।

मुर्राटू कलाई जो पहली फिल्म थी जो जैल्लीकटू के ऊपर फिल्माई गयी थी जो १९८० में बनाई गयी थी। ( यह फिल्म , इंग्लिश फिल्म Rogue Bull पर आधारित थी ) इसमें रजनीकांत ,रति अग्निहोत्री और सुमलथा ने काम किया था। रजनीकांत की AVM बैनर की पहली फिल्म थी जो उन्होंने इस बैनर तले काम किया था .

इसके बाद जो दूसरी फिल्म आयी थी उसका नाम चरयान पांडियान था। इस फिल्म में सरथकुमार श्रीजा ,विजयकुमार नागेश आनंद ,बाबु मंजुला ,विजयकुमार चित्रा गौंड़ामणि इन कलाकार की मुख्य भुमकाये थी ,और इसे १९९१ में पर्देपर प्रदर्शित किया गया था। यह फिल्म इतनी कामयाब रही थी की बॉक्स ऑफिस पर २०० दिन तक चली थी।

तीसरी फिल्म जो बनी थी उसका नाम था राजकुमारण और इसे १९९४ में पर्देपर प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म को आर वि उदयकुमार ने निर्देशित किया था। इस फिल्म में मुख्य कलाकार के रूप में प्रभु ,मीना और नादिया को दिखाया गया था। जिस दिन फिल्म को प्रदर्शित किया गया था उसी दिन थाई पोंगल था जो हर साल १४ जनवरी को आता है। १४ जनवरी १९९४ में दिखाई गयी जो तेलगु फिल्म हेल्लो बाबू पर आधारित थी

जल्लीकट्टू पर जो चौथी फिल्म बनी थी उसमे कमल हसन मुख्य कलाकार के रूप में थे इसे भी १४ जनवरी २००४ में प्रदर्शित किया गया था।

वीरुमांडी एक एक्शन ड्रामा था जो कमल हसन ने निर्देशित किया था ,जो इस फिल्म में टाइटल रोल में उभरे थे। यह दो कैदी पर आधारित थी एक कोथाला ( पशुपथि )और विड़मण्डी ( कमल हसन) जिन्हें फांशी की सजा हुई हो ,इनके आलावा अभिराम ,नापोलेन ,रोहिणी ,शंमुगराजन और नासर भी नजर आते है। वीरुमांडी को तेलगु में भी बनाया था जो "पोथूराजू " के नाम से जानेजाति है.
यह फिल्म राशोमन इफ़ेक्ट (१९५० जापानी फिल्म ) पर आधारित थी।

और एक फिल्म बनाई गयी उसका नाम अरावण था (snake सांप ),एक तमिल इतिहासिक काव्य कावल कोट्टम पर आधारित थी। इसे २ मार्च २०१२ में दर्शाया गया था। इसमें आधी ,धनशिका ,अर्चना कवी ,पशुपति मुख्य किरदार में थे साथ में कबीर बेदी एक दमदार रोल में नजर आते है।
इस फिल्म को पुनः हिंदी में डब्ड किया गया था उस फिल्म का नाम था जंगल द बैटल ग्राउंड के रूप में।

ऐसे ही बड़े बड़े स्टार कास्ट और उपन्यास पर आधारित बनाये हुए फिल्म को देखकर आम जनता आपना मुकाम भुलकर ऐसे जान लेवे खेल को एक आपना मुकाम बना लेती है।

दरअसल ऐसा नहीं होना चाहिये खेल को खेल से मुकाम से देखना चाहिए ,और इस तरह के खेलो को बंद कर देना चाहिए। जो इंसान को जानवर बना दे ,और जानवर बनकर उसकी ताकत आजमाने का फिजूल कोशिश कर दे ?

इस साल २०१७ में तमिलनाडु सरकारने तीन साल पहले लगाया हुवा बैन हटाया है , जो इस खेल पर बंदी लगाई थी। बंदी अभी उठा दी , जैसे ही यह खेल मरीना बिच पर शुरू हुवा था तब पहले ही दिन दो लोगोंकी मृत्यु हो गयी औए आठ लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।

क्या यह खेल इंसान को उसके विकास के लिए उपयुक्त है ,उसे नर संहार और प्राणी मात्रा को तकलीफ में डालकर खेल खेला जाय ? नहीं कतई नहीं ,ऐसे खेल को कायम बंदी देनी चाहिय। और जो मनुष्य वध और प्राणीयों को क्षति पहुँचाने वाले खेल को बंद कर देना चाहिए।

( सभी तस्वीरे गूगल के सौजन्य से )
पोस्टेड : बी आर शिंदे। २६ /०१/२०१७ : ११:२२ पी एम्)





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Monday, December 12, 2016

मी कसा झालो , मुक्कदर का शिकंदर !

मी कसा झालो

मुक्कदर का शिकंदर !


मी कार्यालीन  कॅम्प वर नसेल तर कधी सायकल वर जातो ,तर कधी मोर्निंग वाक करतो ,मी कॉलेज  मध्ये असताना माझ्या  वडिलाने मला एक सायकल घेऊन दिली होती तो काळ होता १९८४ चा मी माझी शाळा करून नुकताच लातूरला कॉलेज करण्यासाठी आलो होतो  ,वडील माझे खूप हरणकाळजी स्वभावाचे ,माझ्यावर त्यांचे खूप प्रेम ,कारण माझ्या पाटीवर एकूण तीन मुलीचा आणि तीन भावांचा विस्तार ,मी मोठा असल्या कारणाने ते मला खूप जपत असत ,म्हणून ते काळजी करीत असत. तसे कारने खूप होती त्यातले मला असे एक  वाटते ते म्हणजे मी त्यांचा दुसऱ्या क्रमांकाचा मुलगा  माझ्या अगोदर एक मला बहीण होती ती लगेच काही कारणास्तव लहानपणी  मरण पावली होती ,असे नंतर  माय  ने मला सांगितले होते ,मी आणि माझ्या  नंतर एकूण तीन मुली आशालता ,उषा आणि महानंदा .या तिघीचा पाठीवर परत तीन भाऊ झाले .विजय ,दीपक आणि शिद्धेश्वर .या प्रेमापोटी ते माझी खूप काळजी घेत .हि गोस्त आहे ती १९८४ सालची .

मी शिवाजी विद्यालय हाळी -हंडरगुळी ,तालुका उदगीर येथून प्रथम वर्गात १० वि पास होऊन आलो ते ,जिल्ह्याचं ठिकाणी लातूर ला कॉलेज करण्यासाठी आणि श्री बसवेश्वर कॉलेज ला प्रवेश घेतला आणि माझे कॉलेज चे दिवस चालू झाले .

‘हरकुलस’ सायकल घेऊन दिली होती त्या वेळी माझ्या वडिलाने  त्यावर मी रोज  कॉलेजला जात  असे ..मला गावी असताना सायकल खूप येत होती ,  कारण सायकल चालवणे ,खेळणे खूप आवडत असे .

सायकल घेतल्यापासून सारखे वाटत होते कि सायकल वर कांही तरी नाव असावे ? कॉलेज ची मुलं आपापल्या परीने आवडीप्रमाणे सायकल वर नाव टाकीत असत . मग सायकल वर काय  नाव असावे असे मला सारखे विचारात टाकत असे  ,त्याच  दरम्यान लातूर मध्ये मी शिकत  असताना रिगल सिनामामध्ये  अमिताभ बच्चन चा सीनेला लागला होता आणि तो   मी पहिला तेव्हा असे वाटले कि ,सायकल वर नाव ......
“मुक्कदर का शिकंदर “ टाकावे हे पक्के झाले .  आणि मी ते सायकलच्या चैन च्या  मडगाड वर पेंटर  रंगारी सर यांच्या कडून ते काम करून घेतले .


आणि ते नाव  मी सार्थक केले  झाले.कारण मी केलेला माझा विकास आणि विश्वास आज मला दिसतो आहे.  

मी शाळेत ईयेत्ता आठवी पर्यंत नियमित गेलेलं आठवत नाही .माझे दादा खूप काळजीत असत ,एकदा असा योग आला कि यांचे चुलत भाऊ डॉ  .डी एन शिंदे हळीला गावी आले होते ,त्यांनी मला दादांच्या विंनती वरून शाळेत नियमित जा आणि अभ्यास कर असा सल्ला दिला नि मी खरोकर पूर्ण बदलून गेलो .सतत मेहनत केली नी ईयेत्ता दहावी मध्ये प्रथम क्रमांकाने पास झालो .हे श्रेय जाते ते माझे काका डॉ शिंदे यांना ,ते सर जे.जे.हॉस्पिटल ,भायकला येथे स्त्री रोग तञ् म्हणून कार्यरत होते . तसेच कामावरून रेर्टिर्ड होईपर्येंत त्यांचेकडे व जे जे  कॅन्टीन चार्जे  पण होता .

दादा नुकतेच गावी गेले आहेत. कारण मी लातूर सोडल्या मुले ते पण गावी कायमचे स्थायिक झाले आहेत ,ते एक कुशल क्लॅरिनेट वादक ,गायक ,आणि उत्तम सिव्हिल चे काम करत असत . त्यांनी १९९५ ला राजा शाहू छत्रपती महविद्यालय येथील माझ्या डोळ्यासमोर संपूर्ण वर्गातील भिंती वरील  फळे तयार केले होते ,तेंव्हा डॉ वाघमारे सर ,प्राचार्य होते . त्यांनी हे वर्गातील फळे (ब्लॅक बोर्ड ) बघून माझ्या वडिलांची प्रशंसा केली होती . “ शिंदे मिस्त्री तुम्ही हे सर्व कुठे शिकला आहेत ,एखाद्या शिल्पकाराला लाजवेल असे फळे तुम्ही कोरून काढले आहेत “ आज के वाक्य एकूण माझे डोळे पाणावले आहेत ?

माझे दादा एक कुशल वादक पण होते ,ते नेहमी हैद्राबाद ला वाजवण्या साठी जात ,ते बरेचदा शीख बँड मध्ये काम करीत असत . एकदा हैद्राबाद ला असताना त्यांचा सनई वादक बिस्मिल्ला खान यांच्याशीही संपर्क आला होता ,दोघांनी एका मंचावर गीत गायनाचा कार्यक्रम केला होता ,जेंव्हा माझे वडील क्लॅरिनेट वाजून उठले तेंव्हा उस्ताद खान साहेबानी माझ्या दादांची शबासकी देऊन पाठ थोपटली होती . असे माझे कष्टकरी होते ?

    त्यांनी ती १९८४ ची सायकल पुनः दुरुस्त केली आहे ,ती बघून मला माझे कॉलेज चे दिवस आठवले ,व तो दुष्काळ पण आठवला .तेव्हा मी आणि माझे वडील दोघेच लातूर ला राहत असू ,माय आणि इतर भाऊ- बहिणी गावी राहत असत .

माझे दादा भूमिहीन शेतमजूर पण शहरात असल्याकारणाने ते  शेतात काम न करता ,गोवंडी काम करत .माझे अकरावी ते बी .ए .चे तृतीय वर्ष पर्येंत चे पूर्ण  शिक्षण घरातले काम करून  पूर्ण केले आहे ,दोघांचा स्वयपाक ,घर सफाई भांडी धुनि नि घरातील इतर कामे करून कॉलेज ला जात होतो आणि दुपारच्या सुट्टीत येऊन भाकर खाऊन परत कॉलेज ला जाई

जेंव्हा मी लातूर सोडलं तेंव्हा माझे दादा काही दिवस राहिले ,पण खाण्यापिण्याचा त्रास व इतर काम यामुळे ते पण १९८९ -१९९० ला लातूर सोडून गावी गेले .

मी मुंबईत एम .ए .इंग्लिश या पदवी अभ्यास क्रमाल प्रवेश घेतला ,आणि डॉ .बाबसाहेब आंबेडकर ,शासकीय मुलांचे वसतिगृह ,बी,डी .डी.चाळ वरळी  येथे प्रवेश मिळताच  राहावयास गेलो. त्या पूर्वी मला जो आधार होता तो माझी बहीण आशा हीचा तिच्याकडे मी मुंबईत आल्यापासून ते वसतिगृह प्रवेश पर्येंत घोडबंदर ला वास्तव्यात होतो .


प्रथम वर्ष पूर्ण झाल्यावर दिव्तीय वर्षात असताना मी बी .एड (कर्णबधीर ) डिग्री साठी अली यावर जंग राष्ट्रीय विकलांग संस्थान ,बांद्रा मुंबई येथे प्रवेश घेतला नी मी तेथून पास झालो ..आणि माझे एम.ए .चे दिव्तीय वर्ष अधुरे राहिले ..

आणि माझा विस्तार सेवा सहायक ( विशेष शिक्षा ) म्हणून १९९५ साली अली यावर जंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्था ,के. सि . मार्ग बांद्रा मुंबई ( भारत सरकार ).... एकात भरणा झाला नी भारत भाराचा  प्रवास  सुरु झाला तो कधी न संपणारा .....

गुणो का खज़ाना है टमाटर !


गुणो का खज़ाना है टमाटर ! सेहत और सौंदर्य दोनों में लाभदायक..!!


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टमाटर सिर्फ स्वाद में ही खट्टा-मीठा नहीं होता बल्कि टमाटर कई तरह के औषधिय गुणों से भी भरपूर होता है। टमाटर एंटी-ऑक्सीडेंट और खासकर लाइकोपीन से भरपूर होता है। टमाटर में प्रोटीन, विटामिन, वसा आदि तत्व विद्यमान होते हैं। यह सेवफल व संतरा दोनों के गुणों से युक्त होता है। कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है इसके अलावा भी टमाटर खाने से कई लाभ होते हैं। पौष्टिक तत्वों से भरपूर टमाटर हर मौसम में फायदेमंद है। इसे सब्जी में डालें या सलाद के रूप में या किसी और रूप में यह आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा।

टमाटर प्राकृतिक विटामिन और मिनरल्स से भरपूर होते है जिनमे विशेष रूप से विटामिन A, K, B1,B3, B5, B6, B7 और विटामिन C का समावेश होता है. इसके साथ ही टमाटर में फोलेट, आयरन, पोटेशियम, मेंग्नेशियम, क्रोनियम, कोलिन, जिंक और फास्फोरस भी होता है

टमाटर के फायदे | Benefits Of Tomato :

भूख बढाने के लिए – टमाटर खाने से भूख बढती है। इसके अलावा टमाटर पाचन शक्ति, पेट से संबंधित अनेक समस्याओं को दूर करता है। टमाटर खाने से पेट साफ रहता है और इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।

पेट के लिए – पेट में कीड कीड़े हैं तो हर रोज खाली पेट टमाटर खाने फायदा होता है। टमाटर में हींग का छौका लगाकर पीजिए, पेट के सारे कीडे मर जाएंगे। टमाटर पर काली मिर्च लगाकर खाना भी काफी फायदेमंद होता है।

डायबिटीज के लिए – डायबिटीज रोगियों के लिए टमाटर खाना बहुत फायदेमंद होता है।टमाटर, क्रोमियम का एक बहुत अच्छा स्रोत हैं, जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है। हर रोज एक खीरा और एक टमाटर खाने से डायबिटीज रोगी को लाभ मिलता है। टमाटर आंखों व पेशाब संबंधी रोगों के लिए भी फायदेमंद है।लीवर और किडनी के लिए – टमाटर खाने से लीवर और किडनी की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। हर रोज टमाटर का सूप पीने से लीवर और किडनी को फायदा होता है।

गठिया के लिए – अगर आपको गठिया है तो टमाटर का सेवन कीजिए। एक गिलास टमाटर के रस को सोंठ में डालकर अजवायन के साथ सुबह-शाम पीजिए, गठिया में फायदा होगा।धूप से जली त्वचा के लिए – एक ताज़ा टमाटर और आधा कप दही को मिलाकर पीस ले और धूप से जली त्वचा पर लागये इस से राहत मिलती है |
दिल के रोग के लिए मददगार है टमाटर – टमाटर रोज खाने से अप्प का दिल मजबूत रहता है जिससे आप को हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है और साथ में  ब्लड प्रेशर कंट्रोल में आता है
आखों की रौशनी के लिए मददगार है टमाटर – टमाटर आपकी दृष्टि में सुधार कर सकता है। टमाटर जो विटामिन ए प्रदान करता है, वो दृष्टि में सुधार और रतौंधी को रोकने में मदद कर सकता है। हाल के शोध से पता चला है कि, टमाटर लेने से धब्बेदार अध: विकृति, एक गंभीर और अपरिवर्तनीय आंख की स्थिति को कम करने में मदद मिल सकती है।
त्वचा के लिए – ब्रिटेन स्थित न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि टमाटर में एक ऐसा तत्व पाया जाता है जो त्वचा की सूर्य की पराबैंगनी किरणों से रक्षा करता है। इस तत्व को लाइकोपेन कहते हैं। इसके कारण ही टमाटर का रंग लाल होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि टमाटर से बने खाद्य पदार्थो (टोमैटो कैचप, प्यूरी, सूप, जूस) में यह भरपूर मात्रा में होता है।
प्रजनन शक्ति :- टमाटर का सूप पीने से मर्दों  की पर्जन्न शक्ति बढ़ जाती है |
अगर चाहते हैं कि आप एक स्वस्थ जीवन जिएं और प्रोस्टेट कैंसर जैसी घातक बीमारी से दूर रहें, तो जरूरी है कि आप रोजाना कम से कम एक  टमाटर जरूर खाएं।



श्रीराम गोजमगुंडे आणि मी

श्रीराम गोजमगुंडे आणि मी:





सन 1986 ची गोस्ट , श्रीराम गोजमगुंडे "झटपट करु दे खटपट " नंतर माझ्या कॉलेज मध्ये वार्षिक महोत्सवात प्रमुख पाहुणे म्हणून आले होते।
त्यांचे हस्ते मला एका नाटकात 'बेस्ट कलाकार 'चा बहुमान मिळाला होता। प्रशंसा प्रमाणपत्र आणि रोख रक्कम 501/- रुपय।
त्यांची आठवण आली म्हणून ,मी आज ब्लॉग वर लिहीत आहे कारण ते आज आपल्यात नाहीत।

1 डिसेंबर 2016 ला अल्पशा आजाराने एका खासजी इस्पितळात लातूर येथे निधन झाले। ते 70 वर्षाचे होते।

लातूर चे पहिले सिने कलाकार, नट आणि दिग्दर्शक।असा त्यांचा प्रवास होता . त्यांचा सुप्रसिद्ध सिनेमा म्हणजे 'राजा छत्रपती'.
राजा शिवाजी हा त्यांचा एक उत्कृष्ट सिनेमा या सदरात मोडतो .

झटपट करू दे खटपट ' या सिनेमाचे गीत "दगडाने अंग तू चोळू नको ,ची शूटिंग मी पहिली होती। हे गीत त्याच्या शेतात शूट झालं होत ?सोबत सारला येवलेकर होत्या । सिनेमा तर चांगलं होता ,पण फ मु शिंदे यांचे गीत आणि महेंद्र कपूर आणि उषा मंगेशकर यांचा आवाज हा त्या सिमेचा गाभा होता । ते स्वतः या चित्रपटाचे नट आणि दिग्दर्शक होते ।

संदर्भ फोटो :श्री बसवेश्वर कॉलेज,लातूर ,प्राचार्य सितानागरे ,प्रा कुलकर्णी सर, माझे स्नेही सत्यनारायण राजहंस, मी आणि श्रीराम गोजांगुंडे ।


वट्टपोतक_जातक_चर्या

वट्टपोतक_जातक_चर्या जंगलात जेव्हा भिषण आग लागते तेव्हा ती आग आपल्या मार्गातील सर्वच वस्तुंना जाळुन खाक करते. या भिषण अग्निमध्ये काही निरपराध...