एक विधवा की सिख
महाराज एक मशहूर गांव में सवा सौ मन गुड़ बांट रहे थे।बाटते बाटते एक बालिका को गुड़ देने लगे तो उसने मना कर दिया,‘मैं नहीं लूंगी।’ महाराज ने पूछा, ‘क्यों’? ‘मुझे शिक्षा मिली है कि यूं मुफ्त कुछ नहीं लेना चाहिए।’ ‘तो महाराज ने पूछा कैसे लेना चाहिए’? तो बालिका बोली ‘सोचो निसर्ग ने हमें हाथ-पैर आखिर क्यों दिए हैं। जो मेहनत और मजदूरी से मिले, सिर्फ वही हमें लेना चाहिए और उसी से गुजारा करते हुए संतुष्ट रहना चाहिए।’ महाराज ने पूछा,‘तुझे यह सीख किसने दी’? ‘मां ने।’ महाराज उसकी मां के पास गए और पूछा,‘तुमने लड़की को ये सीख कैसे दी’?
‘मैंने इसमें नया क्या कहा है , निसर्ग ने जब हाथ पैर दिए हैं, तो मुफ्त नहीं लेना चाहिए।’ ‘तुमने धर्म शास्त्र पढ़े हैं’ ‘नहीं।’ ‘तुम्हारी आजीविका कैसे चलती है’ ‘पूरा संसार उसिपे चलता है जो सिर पर बैठा है ,ओ वह है निसर्ग । लकड़ी काट लाती हूं, उससे अनाज मिल जाता है, लड़की भोजन बना लेती है, मजदूरी से हमारा गुजारा सुख से हो रहा है।’ ‘और इस लड़की के पिता...’ वह उदास हो गई और बोली,‘लड़की के पिता थोड़ी आयु लेकर आए थे।वह कभी के हमें छोड़कर चल पढ़े है
अपने पीछे तीस बीघा जमीन और दो बैल छोड़ गए थे। मैंने विचार किया कि इस संपत्ति से मेरा क्या लेना-देना है। मैंने इसके लिए कब पसीना बहाया। यदि मैं वृद्ध, अपंग या अशक्त होती तो अपने लिए इस संपत्ति का उपयोग करती, परंतु ऐसा नहीं है। सोचा, मैं इस संपत्ति का क्या करूं?
विचार आया कि यदि ये संपत्ति गांव की किसी भलाई के काम में लगा दी जाए तो अच्छा होगा। मैं सोचने लगी कि ऐसा क्या काम हो सकता है? सोचा, गांव में जल का बहुत कष्ट है, कुआं बनवा दूं। मैंने जमीन बेचकर सब रकम एक सेठ को सौंप उससे कहा कि इस पैसे से कुआं बनवा दे। सेठ ने परिश्रम करके उस कुएं के साथ ही पशुओं के जल पीने के लिए हौज भी बनवा दिया।’ महाराज ने भी उस स्त्री से बड़ी सीख ली।
लेख पसंत आया तो धम्मदान करो ..........