Thursday, December 1, 2016

फैसिलिटी का पूरा फायदा लेने वाले कोण है ?

फैसिलिटी का पूरा फायदा लेने वाले कोण है ?

मेरा मातंग समाज महान ,कहकर नहीं चलेगा ।
पहले देश आता है ।
उदा : जब भाषा के ऊपर देश में तनाव था ।
तब हिंदी भाषा को राष्ट्र का दर्जा देनेके लिये वोटिंग हुई ।
50 वोट हिदी को 50 वोट अलग भाषा (?) को ?
फिर ऐसा हुवा किसीने दूसरे दिन एक वोट तोड़कर एक वोट हिंदी को दे दिया ।
हिंदी राष्ट्र भाषा बन गयी ?
राष्ट्र भाषा किसे कहते है ,जो हर आदमी की हो ,गांव की ,अपने माँ की ,अपने समाज और राज्य की ? ऐसा नहीं हुवा ।
राष्ट्र भाषा कहते हुई भी वह ,राज्य भाषा बन गयी ।
ठीक इसी तरह मातंग समाज की हालत है । इसे कोई जानता ही नहीं ?
वह आज भी 'मांग ' मेरे बहुजन गांव में जी रहे है।
और हम शहर में।
जैसे हिंदी अगर राज्य भाषा होती तो ठीक ही वह अपनी भाषा में कहती।
उदा : घर में जो मैगी आती है ,उसपे न मराठी में लिखा नहीं है।
न हिंदी में,सिर्फ अंग्रेजी में ।
तो हमारी राष्ट्रिय भाषा 'अंग्रेजी 'हो गयी।
ठीक इसी तरह ,मातंग की भाषा ,हिन्दू होगयी ,हिन्दू मांग।
किंव की हम आज भी ,मनु के दिखाई हुई रस्ते पे चल रहे है।
महात्मा फुले -आंबेडकर के नहीं।
(लेकिन फैसिलिटी का पूरा फायदा तो ले रहे है?)



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